एक ही परेमश्वर के है अनेक नाम, भ्रम होंगे दूर


ओ३म् शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्य्य मा ।
शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः ।।
नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं बह्म्र वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम् अवतु वक्तारम् । ओ३म् शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः ।।१।।

ओमकार (ॐ) ही परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है, क्योंकि इसमें जो अ, उ और म् तीन अक्षर मिलकर एक (ओ३म्) समुदाय हुआ है, इस एक नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं जैसे-अकार से विराट्, अग्नि और विश्वादि। उकार से हिरण्यगर्भ, वायु और तैजसादि। मकार से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञादि नामों का वाचक और ग्राहक है। उसका ऐसा ही वेदादि सत्यशास्त्रें में स्पष्ट व्याख्यान किया है कि प्रकरणानुकूल ये सब नाम परमेश्वर ही के हैं।

‘ओम्’ आदि नाम सार्थक हैं-जैसे (ओं खं०) ‘अवतीत्योम्आकाशमिव व्यापकत्वात् खम्सर्वेभ्यो बृहत्वाद् ब्रह्म’ रक्षा करने से (ओम्), आकाशवत् व्यापक होने से (खम्), सब से बड़ा होने से ईश्वर का नाम (ब्रह्महै।।१।।
(ओ३म्जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता, उसी की उपासना करनी योग्य है, अन्य की नहीं।।२।।
(ओमित्येत०सब वेदादि शास्त्रें में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम म्’ को कहा है, अन्य सब गौणिक नाम हैं।।३।।
(सर्वे वेदा०क्योंकि सब वेद सब धर्मानुष्ठानरूप तपश्चरण जिसका कथन और मान्य करते और जिसकी प्राप्ति की इच्छा करके ब्रह्मचर्य्याश्रम करते हैं, उसका नाम म्’ है।।४।।
वैदिक सनातन धर्म में परमेश्वर के अनेकों नाम दिए है कही वह गुणवाचक है , कही कर्म वाचक और कही अलंकार रूप में है। परंतु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं की अलग अलग़ नाम होने से ईश्वर भी अलग अलग है। 

वेदों में परमेश्वर के जो जो नाम कहे गए उसके अर्थ न समझने के कारण हमने उन्हें अलग अलग मान लिया । कुछ इतिहासकार भी अपने अधकचरे ज्ञान के कारण वेदों में आर्यो को अलग अलग देवताओं की उपासना करने वाला कहते है। जैसे वेदों में अग्नि , वरुण , आर्यम्मा, सोम, प्रजापति, दक्ष, इंद्र आदि अनेको शब्दों का अर्थ वे भिन्न भिन्न देवताओं के रूप में कहते है जो की बिल्कुल गलत और निराधार है। ऋषि दयानंद ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में इन सभी नामो के वैदिक अर्थ लिखे है और बताया है की परमेश्वर के अनेक गुण ही अनेक नाम बने।  आइये ऐसे कुछ नाम और उनके अर्थ देखते है - 

(प्रशासिता०) जो सब को शिक्षा देनेहारा, सूक्ष्म से सूक्ष्म, स्वप्रकाशस्वरूप, समाधिस्थ बुद्धि से जानने योग्य है, उसको परम पुरुष जानना चाहिए।।५।।  - अतः उसे परमपुरुष भी कहते है । 
ईश्वर स्वप्रकाश  रूप होने से ‘अग्नि’ कहलाता है । विज्ञानस्वरूप होने से ‘मनु’, सब का पालन करने से ‘प्रजापति’, परमैश्वर्य्यवान् होने से ‘इन्द्र’, सब का जीवनमूल होने से ‘प्राण’ और निरन्तर व्यापक होने से परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्म’ भी उसी एक ईश्वर को कहते है ।
सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’ और प्रलय में सब का काल और काल का भी काल है, इसलिए उसी एक प्रभु का नाम ‘कालाग्नि’ और 'महाकाल' है।।
महान स्वरुप होने से 'गरुत्मान', उत्तम रूप से पालन करने से और पूर्ण कर्मों को सम्पादित करने से 'सुपर्ण', अत्यंत बलवान होने से 'मातरिश्वा', सभी प्राणियों( भूतो) के होने से 'भूमि' आदि भी उसी परमेश्वर के नाम है।  आगे की पंक्तियों में महर्षि दयानंद परमेश्वर के कुछ और नाम भी अर्थ सहित बताते है - 
जिसमें सूर्य्यादि तेज वाले लोक उत्पन्न होके जिसके आधार रहते हैं अथवा जो सूर्यादि तेजःस्वरूप पदार्थों का गर्भ नाम, (उत्पत्ति) और निवासस्थान है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘हिरण्यगर्भ’ है। 

जो चराऽचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता और सब बलवानों से बलवान् है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘वायु’ है।

‘य ईष्टे सर्वैश्वर्यवान् वर्त्तते स ईश्वरं:’ जिस का सत्य विचारशील ज्ञान और अनन्त ऐश्वर्य है, इससे उस परमात्मा का नाम ‘ईश्वर’ है।

‘न विद्यते विनाशो यस्य सोऽयमदितिः, अदितिरेव आदित्यः’ जिसका विनाश कभी न हो उसी ईश्वर की ‘आदित्य’ संज्ञा है।

‘य इन्दति परमैश्वर्यवान् भवति स इन्द्रः परमेश्वरः’ जो अखिल ऐश्वर्ययुक्त है, इस से उस परमात्मा का नाम ‘इन्द्र’ है।


मेद्यतिस्निह्यति स्निह्यते वा स मित्रः’ जो सब से स्नेह करके और सब को प्रीति करने योग्य है, इस से उस परमेश्वर का नाम मित्र’ है।

यः सर्वान् शिष्टान् मुमुक्षून्धर्मात्मनो वृणोत्यथवा यः शिष्टैर्मुमुक्षुभिर्धर्मात्मभिर्व्रियते वर्य्यते वा स वरुणः परमेश्वरः’ जो आत्मयोगी, विद्वान्, मुक्ति की इच्छा करने वाले मुक्त और धर्मात्माओं का स्वीकारकर्त्ता, अथवा जो शिष्ट मुमुक्षु मुक्त और धर्मात्माओं से ग्रहण किया जाता है वह ईश्वर ‘वरुण’ संज्ञक है। अथवा ‘वरुणो नाम वरः श्रेष्ठः’ जिसलिए परमेश्वर सब से श्रेष्ठ है, इसीलिए उस का नाम वरुण’ है।

योऽर्य्यान् स्वामिनो न्यायाधीशान् मिमीते मान्यान् करोति सोऽर्यमा’ जो सत्य न्याय के करनेहारे मनुष्यों का मान्य और पाप तथा पुण्य करने वालों को पाप और पुण्य के फलों का यथावत् सत्य-सत्य नियमकर्ता है, इसी से उस परमेश्वर का नाम अर्य्यमा’ है।

वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम विष्णु’ है।


अभिषवः प्राणिगर्भविमोचनं चोत्पादनम्। यश्चराचरं जगत् सुनोति सूते वोत्पादयति स सविता परमेश्वरः’ जो सब जगत् की उत्पत्ति करता है, इसलिए परमेश्वर का नाम सविता’ है।
यः सर्वं कुम्बति स्वव्याप्त्याच्छादयति स कुबेरो जगदीश्वरः’ जो अपनी व्याप्ति से सब का आच्छादन करे, इस से उस परमेश्वर का नाम कुबेर’ है।

वसन्ति भूतानि यस्मिन्नथवा यः सर्वेषु वसति स वसुरीश्वरः’ जिसमें सब आकाशादि भूत वसते हैं और जो सब में वास कर रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम वसु’ है।

जल और जीवों का नाम नारा है, वे अयन अर्थात् निवासस्थान हैं, जिसका इसलिए सब जीवों में व्यापक परमात्मा का नाम नारायण’ है।

यो यजति विद्वद्भिरिज्यते वा स यज्ञः’ जो सब जगत् के पदार्थों को संयुक्त करता और सब विद्वानों का पूज्य है, और ब्रह्मा से लेके सब ऋषि मुनियों का पूज्य था, है और होगा, इससे उस परमात्मा का नाम यज्ञ’ है, क्योंकि वह सर्वत्र व्यापक है।

यः पाति सर्वान् स पिता’ जो सब का रक्षक जैसा पिता अपने सन्तानों पर सदा कृपालु होकर उन की उन्नति चाहता है, वैसे ही परमेश्वर सब जीवों की उन्नति चाहता है, इस से उस का नाम पिता’ है।

यो मिमीते मानयति सर्वाञ्जीवान् स माता’ जैसे पूर्णकृपायुक्त जननी अपने सन्तानों का सुख और उन्नति चाहती है, वैसे परमेश्वर भी सब जीवों की बढ़ती चाहता है, इस से परमेश्वर का नाम माता’ है।

(गॄ शब्देइस धातु से ‘गुरु’ शब्द बना है। यो धर्म्यान् शब्दान् गृणात्युपदिशति स गुरुः’ ‘स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्। योग०। जो सत्यधर्मप्रतिपादक, सकल विद्यायुक्त वेदों का उपदेश करता, सृष्टि की आदि में अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा और ब्रह्मादि गुरुओं का भी गुरु और जिसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए उस परमेश्वर का नाम गुरु’ है।

योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा’ जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ब्रह्मा’ है।

ये प्रकृत्यादयो जडा जीवाश्च गण्यन्ते संख्यायन्ते तेषामीशः स्वामी पतिः पालको वा’ जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालन करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम गणेश’ वा गणपति’ है।

‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम शक्ति’ है।

यः श्रीयते सेव्यते सर्वेण जगता विद्वद्भिर्योगिभिश्च स श्रीरीश्वरः। जिस का सेवन सब जगत्, विद्वान् और योगीजन करते हैं, उस परमात्मा का नाम श्री’ है।

यो लक्षयति पश्यत्यंकते चिह्नयति चराचरं जगदथवा वेदैराप्तैर्योगिभिश्च यो लक्ष्यते स लक्ष्मीः सर्वप्रियेश्वरः’ जो सब चराचर जगत् को देखता, चिह्नित अर्थात् दृश्य बनाता, जैसे शरीर के नेत्र, नासिकादि और वृक्ष के पत्र, पुष्प, फल, मूल, पृथिवी, जल के कृष्ण, रक्त, श्वेत, मृत्तिका, पाषाण, चन्द्र, सूर्यादि चिह्न बनाता तथा सब को देखता, सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादिशास्त्र वा धार्मिक विद्वान् योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम लक्ष्मी’ है।

सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती’ जिस को विविध विज्ञान अर्थात् शब्द, अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे, इससे उस परमेश्वर का नाम सरस्वती’ है।

यो धर्म्मे राजते स धर्मराजः’ जो धर्म ही में प्रकाशमान और अधर्म से रहित, धर्म ही का प्रकाश करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम धर्म्मराज’ है।

य सर्वान् प्राणिनो नियच्छति स यमः’ जो सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता और सब अन्यायों से पृथक् रहता है, इसलिए परमात्मा का नाम यम’ है।

भगः सकलैश्वर्य्यं सेवनं वा विद्यते यस्य स भगवान्’ जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त वा भजने के योग्य है, इसीलिए उस ईश्वर का नाम भगवान्’ है।

यः शंकल्याणं सुखं करोति स शंकरः’ जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम शंकर’ है।

यो महतां देवः स महादेवः’ जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम महादेव’ है।

बहुलमेतन्निदर्शनम्।’ इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम शिव’ है।

यो तो ऋषि दयानंद ने सत्यार्थ-प्रकाश के प्रथम अध्याय में ही परमेश्वर के सौ नाम और उनके अर्थ गिनाये है परन्तु यहाँ कुछ ऐसे नाम और उनके अर्थ दिए गए है जिनका जन-सामान्य में अधिक प्रचलन है। आशा है इसे पढ़कर आप खुद ही समझ गए होंगे की वैदिक काल में ऋषियों ने जिस एक परमात्मा को उसके अनंत गुणों के अनुरूप अनेकों नाम दिए , अज्ञान अंधकार के युग में वे ही नाम अलग-अलग देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाने लगे। 

अतः आइये हम सभी बहुदेव-देवी वाद के भ्रमजाल को छोड़कर उसके सर्वोत्तम नाम ॐ की उपासना करे । 

नवग्रहों की उपासना करना कितना सही ? आइये जाने

क्या चन्द्र , मंगल , शनि , राहु , केतु भी ग्रहों के नाम नहीं परमेश्वर के नाम है ? फिर क्या नवग्रहों की उपासना करना ठीक नहीं ?

बिल्कुल नहीं। अरे यह ग्रह तो हमारे सौरमंडल के पिंड है , ऐसे करोड़ो अन्य ग्रह-नक्षत्र हमारे सौरमंडल में हो सकते है, ऐसे अनेकों सौरमण्डल हमारी एक मन्दाकिनी आकाशगंगा में है, और ऐसी कितनी ही आकाशगंगाएँ इस ब्रम्हाण्ड में है। और ऐसे कितने ही ब्रम्हाण्ड इस महाविश्व ब्रम्हाण्ड का हिस्सा बनकर अंतरिक्ष में टिके है। 

अरे भोले मनुष्यों जरा एक मिनिट के लिए सोचों; ये ग्रह जो खुद की और आ रहे विशाल उल्कापिंडो और अंतरिक्ष की छोटी से छोटी चट्टान को नहीं रोक सकते, जो अपने ऊपर लगने वाले ग्रहण को नहीं रोक सकते वो तुम्हारी परेशानियों और संकटों को क्या रोकेंगे? 

पोंगा पण्डित अपने उल्लू सीधे करने के लिए तुम्हे ग्रहबाधा, शनि की दशा और पाप ग्रहों की बातें बताकर तुम्हे मुर्ख बनाकर तुम्हारा मेहनत का धन लूट रहे है। पवित्र वेदों में, जहाँ कहीं भी मंगल, राहु, केतु आदि शब्दों का उल्लेख है वो परमेश्वर के ही गुण वाचक नाम है। ऋषि दयानंद ने अच्छी तरह इसे स्पष्ट किया है - देखों - 

सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य्य’ है।

यश्चन्दति चन्दयति वा स चन्द्रः’ जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है।

यो मंगति मंगयति वा स मंगलः’ जो आप मंगलस्वरूप और सब जीवों के मंगल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मंगल’ है।

यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः’ जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है।

यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः’ जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ ( गुरु) है।


यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः’ जो अत्यन्त पवित्र और जिसके संग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिये ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है।

यः शनैश्चरति स शनैश्चरः’ जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है।

यो रहति परित्यजति दुष्टान् राहयति त्याजयति स राहुरीश्वरः’। जो एकान्तस्वरूप जिसके स्वरूप में दूसरा पदार्थ संयुक्त नहीं, जो दुष्टों को छोड़ने और अन्य को छुड़ाने हारा है, इससे परमेश्वर का नाम ‘राहु’ है।

यः केतयति चिकित्सति वा स केतुरीश्वरः’ जो सब जगत् का निवासस्थान, सब रोगों से रहित और मुमुक्षुओं को मुक्ति समय में सब रोगों से छुड़ाता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘केतु’ है। ( साभार - सत्यार्थ प्रकाश ) 

पहली बार मनुष्य जब चाँद की यात्रा के सपने देख रहा था हमारे देश के ज्यातिषियों और पोंगे पंडितो को हँसी आ रही थी। अनेकों ने इस कार्यक्रम के असफल होने की जोरदार घोषणा की। जैनों और हिंदु धर्म के ग्रंथो में तो चंद्र को देवता कहा गया है, और देवता पर पैर रखने का दुस्साहस एक मनुष्य करे, इस कैसे हो सकता था? 


लेकिन सबके देखते देखते अमेरिका के नौजवान अपने विज्ञान के दम पर चाँद पर अपना झंडा भी गाड़ कर आ गए, फिर रूस, चीन और अब तो भारत भी। लेकिन लक़ीर के फ़क़ीर कुछ लोग आज भी चाँद को देवता मानकर उसकी पूजा कर रहे रहे है। 

अब आते है शनिदेव के मुद्दे पर: आजकल सबसे ज्यादा डिमांड और टीआरपी अगर किस ग्रह की है तो शनिदेव की। क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या अमीर, क्या ग़रीब, शनि की टेढ़ी नज़र से सब डरते है। शनि की साढ़े साती और अढेय्या से सबकी नींद उड़ जाती है। और जब डर का इतना बड़ा मार्केट हो तो उसे भुनाने वाले दुकानदार तो आ ही जाते है। 

गंडा, ताबीज, यंत्र,कवच, माला, हवन, पूजा-अभिषेक, रत्न-नग  क्या क्या शनि के नाम पर नहीं बिकता। गाँव में शनिदेव की टोकरी लेकर फिरने वाले से लेकर शनिदेव के बड़े बड़े धाम के महन्तो तक शनिदेव के प्रतिनिधि आपकी जेब के हिसाब से आपको चूना लगाते है।  

आइये अब ज़रा,इन शनिदेव की कुछ असली-नकली कहानियों को पढ़ते है-  

१. ये शनिदेव जब हनुमान जी के सर पर जा बैठे तो हनुमान ने अपने सिर पर बड़े बड़े पहाड़ रखना शुरू कर दिया, पहाड़ के वजन से कचूमर बनते हुए शनिदेव ने हनुमान जी के बड़े हाथ पैर जोड़े और क्षमा माँगी और कहाँ की ये पहाड़ मुझपर से हटाइये मैं कभी श्रीराम के भक्तो को नहीं सताऊँगा । फिर अपने शरीर पर हुए घावों को ठीक करने के लिए आज तक तैल डलवाते रहते है । 
( पूरी कहानी पढ़े - http://kathapuran.blogspot.in/2012/10/blog-post_2291.html ) 

अब मज़े के बात ये है की जो दो चार पहाड़ो के वजन से टै बोल दिए वो शनिदेव से आप अपने दुर्भाग्य के वजन हटाने को कह रहे है? क्या यह संभव है? 

दूसरी बात जो हनुमान जी के वानर होने के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके, न साढ़ेसाती चली न ढईया और उलटे पैर भागे वो क्या भगवान के स्थान पर पूजा करने लायक है? 

२. ब्रह्म पुराण में शनि कथा : ब्रम्हपुराण की माने तो शनिदेव श्रीकृष्ण के परम भक्त थे! एक दिन जब वे श्रीकृष्ण का ध्यान कर रहे थे उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उनके पास आई लेकिन उन्हें हरवक्त ध्यान करते देखकर नाराज़ हो गई। गुस्से में उसने शनिदेव को शाप ही दे दिया कि तुम जिसकी और देखोगे वह नष्ट ही हो जायेगा। तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। (देखें http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%BF_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5 ) 


 अब ज़रा सोचे एक तो साफ़ पता चलता है की शनिदेव खुद श्रीकृष्ण की भक्ति करते है ? और कलयुग के कृष्णभक्त है की हर शनिवार को हाथ में तैल की बोतल लेकर शनिमंदिरों के आगे कतार लगा कर खड़े रहते है।  दूसरी बात जो खुद को अपनी पत्नी के शाप से नहीं बचा सके क्या वो आपके शाप (संकट) दूर करेंगे ?

और कुछ शास्त्रों के उदाहरण देखें 

" एक बार पिप्पलाद मुनि की बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। बड़े होने पर उनको ज्ञात हुआ कि उनकी पिता की मृत्यु का कारण शनि है तो उन्होंने शनि पर ब्रह्मदंड का संधान किया। उनके प्रहार सहने में असमर्थ शनि भागने लगे। विकलांग होकर शनि भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्पलाद मुनि को बोध कराया कि शनि तो केवल सृष्टि नियमों का पालन करते हैं। यह जानकर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा कर दिया।" 

वाह क्या गज़ब है शनिदेव, भारत के एक ऋषि के डर से भागकर भगवान शिव के पास जा पहुँचे। और आज ऋषियों की संतानें उसी शनि के डर से ज्योतिषियों के डेरे पर भाग रही है!! यही घोर अँधकार है। 

शनि देव के विषय में यह कहा जाता है कि-
  • शनिदेव के कारण गणेश जी का सिर छेदन हुआ।
  • शनिदेव के कारण राम जी को वनवास हुआ था।
  • रावण का संहार शनिदेव के कारण हुआ था।
  • शनिदेव के कारण पांडवों को राज्य से भटकना पड़ा।
  • शनि के क्रोध के कारण विक्रमादित्य जैसे राजा को कष्ट झेलना पड़ा।
  • शनिदेव के कारण राजा हरिशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी।
  • राजा नल और उनकी रानी दमयंती को जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ा था। 
अब एक बात और सोचिये क्या गणेश जी या शिवजी शनि के उपाय (शांति) नहीं कर सकते थे ? श्रीराम का अपने वचन पर दृढ रहना और उसकी रक्षा के राजपाट परिवार छोड़कर वन चले जाने का आदर्श अधिक प्रेरणादायी है या शनिदेव की टेढ़ी नज़र। अगर शनिदेव रावण पर प्रसन्न होते तो क्या रावण, सीता अपहरण जैसे निंदनीय कर्मों को करने के बाद भी अवध्य रहता?  

शनिपूजा ने नाम पर हो रही अंधभक्ति का कारोबार देखे तो खुद शनैश्वर देवस्थान ट्रस्ट शिंगणापुर महाराष्ट्र की वेबसाइट पर लिखा है - (http://www.shanidev.com/hin/the-wondrous-temple-of-the-world.html) 

  • हररोज यहाँ कम से कम एक लाख का कारोबार सम्पन्न होता है |
  • आचार्य उदासी बाबा के काल में शनि भगवान के दर्शन के लिए केवल तिन लोग, वे भी केवल शनिचर को आते थे अब रोजाना करीब १३००० लोग आते है |
  • श्री शनिदेव को तेल समर्पित करने के लिए अनगिनत आते है, कभी १०१ डिब्बे, तो कभी एक क्विंटल, तो एकआधबार एक टैंकर  तैल भी आता है। 
ज्ञानीजन अब खुद ही सोचें की कहाँ से कहाँ हम आ पहुँचे है, नवग्रहों के डर से. 

अब देखें इनके पिता सूर्य देव के कारनामे जिनके बारे में पोंगे पंडित सूर्य निर्बल है कहकर भोले लोंगो को उल्लू बनाते है- 

स्कंध पुराण के काशीखण्ड के अनुसार सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा थी, लेकिन उसने अपने योग से छाया नाम की कन्या को जन्म दिया( जन्म देने के हिसाब से संज्ञा तो छाया की माँ होनी चाहिए और सूर्य छाया के कानूनी पिता) लेकिन संज्ञा ने छाया को सूर्यदेव के सेवा में नियुक्त कर खुद अपने मायके चली गयी। अब सूर्यदेव जैसे महान देवता को अपनी पत्नी संज्ञा और कानून पुत्री छाया में कोई अंतर ही नहीं दिखा और पुत्री छाया के साथ भी उन्होंने तीन बच्चों को जन्म दे दिया, जिसमे से एक शनिदेव थे! 

एक और कथा के हिसाब से -जब शनि का जन्म हुआ तो पिता सूर्यदेव शनि को काले रंग का देखकर हैरान हो गए | उन्हें छाया पर शक हुआ | उन्होंने छाया का अपमान कर डाला , कहा कि 'यह मेरा बेटा नहीं है |' श्री शनिदेव ने देखा कि मेरे पिता , माँ का अपमान कर रहे है | उन्होने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा , तो पिता कि पूरी देह का रंग काला सा हो गया । 

आप खुद ही सोचें सबको ज्ञान देने वाले सूर्यदेवता अपने बच्चे को भी नहीं पहचान सके। देवता होकर गोरे-काले के रँगभेद में पड़ गए। पत्नी का अपमान कर दिया, क्या ये देवता है? और मज़े की बात तो यह की शनिदेव के पैदा होते ही यह सब समझ भी लिया और ग़ुस्से से अपने पिता को ही काला कर दिया। अब  ये जो सूर्यदेव आपके कष्टों को दूर करने चले थे अपने पुत्र के कारण खुद ही कष्ट में पड़ गए थे तो आपकी क्या मदद करेंगे आप ही सोचे? 

अब जानते है टीआरपी में दूसरे नंबर पर आने वाले 'मंगल ग्रह' की , जिसके आने से शादियाँ तक रुक जाती है, भोली लड़कियों की शादी कभी पेड़ से तो कभी कुत्ते से करवाते है फिर दूसरी शादी दूल्हे से, वो भी बड़ी बड़ी शान्ति करके। 

देवी भागवत् पुराण के अनुसार जब विष्णु वराह अवतार पूरा कर वापस जाने लगे तो धरती ने उनसे पुत्र की इच्छा की और वराह अवतार ने धरती की कामना पूरी कर दी फिर मंगल का जन्म हुआ लेकिन जब उन्हें पता लगा की उनके पिता उनकी माता को छोड़कर चले गए इसलिए मंगल वैवाहिक जीवन में दूरियां पैदा करते हैं। दुर्घटना और रक्तपात की घटनाएं करवाते हैं। (देखे http://www.amarujala.com/spirituality/religion/mars-story-in-puran)  

अब ज़रा मंगलवार व्रत की कथा की गप्प को पढ़े - इस व्रतकथा की नायिका रत्नावली कहानी के आखिर में मंगल देवता से बोली- 'हे ग्रहों के स्वामी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो भी मनुष्य मंगलवार के दिन प्रातः काल लाल पुष्प, लाल चन्दन से पूजा करके आपका स्मरण करे उसको रोग-व्याधि न हो, स्वजनों का कभी वियोग न हो, सर्प, अग्नि तथा शत्रुओं का भय न रहे, जो स्त्री मंगलवार का व्रत करे, वह कभी विधवा न हो।''
मंगलदेव -'तथास्तु' कह कर अन्तर्ध्यान हो गये। 

अब क्या आप मंगलदेवता के व्रत से अजर अमर हो गए ऐसे पांच-दस पतिदेव और ऐसी महान नारियाँ ढूंढकर ला सकते है? अगर संसार के सब रोग व्याधि मंगलवार व्रत से ही ठीक हो जाये तो सारे विश्व में अस्पतालों और औषधि केंद्रों की क्या जरूरत? इस हिसाब से हर अस्पताल और औषधालय तोड़कर वहाँ मंगल देवता के मन्दिर ही बनने चाहिए और चिकित्सा विद्यालयों में चिकित्सा और रोग निदान की मोटी मोटी पुस्तकों के स्थान पर मँगलवार व्रत कथा की पतली की क़िताब पर ही प्रेक्टिस करनी चाहिए।   सर्प, अग्नि और शत्रुओं से भी अभय केवल मंगलवार का व्रत करने से ही हो सकता है तो सरकार को देश में अरबो रुपए सेना रखने में न खर्च करके सीमा पर मंगलवार का व्रत करने वाले और कथा सुनाने वाले पण्डितों को ही रख देना चाहिए। इतना सरल उपाय है। 

अब ज़रा राहु केतु पर विचार करे , अव्वल तो सौरमंडल में ऐसे कोई ग्रह है ही नहीं लेकिन जब धूर्त ज्योतिषियों की पोल खुली तो उन्होंने इन्हें छाया ग्रह कहकर अपनी इज्जत बचा ली । खैर ज़रा इनकी करतूतों पर नज़र डाले - एक राक्षस जो धूर्तता से अमृत पीने के लालच में देवताओं का रूप बनाकर उनकी कतार में बैठ गया और विष्णुजी के चक्र से कटकर राहु और केतु के रूप में विख्यात हो गया उसी बहरूपिये राक्षस को अब हम लोग नवग्रहों के प्रतिष्ठित देवता के रूप में प्रणाम करते है, पूजा पाठ और जप करते है। जहाँ ईश्वर को पूजना चाहिये था वहाँ इस राक्षस की पूजा करते है -कितने शर्म की बात है!  

अब आइये आपको इस गोरखधंधे से जुड़े व्यवसाय के बारे में बताते है- 
आज हमारे देश में नवग्रह पूजा और यंत्र बेचने के धंधे में सैकड़ो वेबसाइट लगी है उनमे से google के पहले पेज़ पर आने वाली कुछ प्रमुख वेबसाइट पर लगे रेट देखिये - 

वेबसाइट : http://www.astrojyoti.com/navagrahapoojas.htm

1.Graha Shanti pooja of any one planet: Cost: INR. 3,500/- 
2.Navagraha pooja: Cost: INR. 3,500/-
3.Birth day Nakshatra Shanti Homa: Cost: INR. 4,500/-
4. Navagraha Homam:Cost: INR. 7,500/- 
5.Nakshatra Shanti Homam:Cost: INR. 9,000/-
6 .Graha Shanti Homam – One Planet – 54,000 Recitals : Cost: INR. 58,000/- 
7.Graha Shanti Homam – One Planet – 108,000 RecitalsCost: INR. 100,000/-  

ऐसे ही सैकड़ो संस्थान इस काम में लगे हुए है। एक पल के लिए सोचिये जिस देश के २३ प्रतिशत से भी अधिक जनता गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुज़ारती है उनके लिए यह नवग्रह पूजा करना क्या संभव है? और बिना इसके क्या उनके जीवन दुर्भाग्य से ही भरे रहेंगे? 

क्या हमारे वेद और उपनिषद इस तरह की "पैसा फेकों - तमाशा देखों"  की मानसिकता पर आधारित थे।  

नवग्रह के मार्केट से जुड़ा एक और बेहद अहम् हिस्सा है अँगूठी और रत्नों का , आइये ज़रा उसकी भी पड़ताल कर ले : 

google पर  gems for navgrah लिखकर सर्च करने से पहले पेज़ पर आई कुछ वेबसाइटों में से एक है http://www.astrologypredict.com/gemstone-category.php?page=Ruby%20Stone 

इस वेबसाइट पर नवग्रह सम्बंधित कुछ रत्नों की क़ीमत देखे : 

५ रत्ती का सूर्य का रत्न रूबी : कीमत Rs 16250
३ रत्ती का चंद्र का रत्न मोती : कीमत 9750 
२ रत्ती के शनि का रत्न नीलम : कीमत 6500 

क्या कोई मजदूर या निम्नवर्गीय व्यक्ति इन्हें पहनने के सपने भी देख सकता है?  

और सवाल ये नहीं है की इनका ग्रहो से सम्बन्ध है , बात तो दरअसल ये है कि जिस मंच पर इतना बड़ा लाखों करोडों का व्यवसाय चल रहा हो उस मुद्दे की असलियत के लिए कौन लड़ना चाहेगा।  

इन सब बातों से समाज के ग़रीब को यही सन्देश जाता है की हमारे बस में तो सिर्फ दुर्भाग्य ही बदा है क्योकि इसका उपाय एक परमेश्वर की भक्ति कर आत्मविश्वास और पुरुषार्थ की प्रेरणा पाना नहीं , इन ग्रह नक्षत्रों के नग पहनना और मोटे चढ़ावे चढ़ाना है । 

आज तो NASA ने सिद्ध कर दिया है की सूर्य सहित अन्य ग्रहों का जन्म और मृत्यु निश्चत होती है। कुछ, लाखों सालो में तो कुछ, करोडों सालो में लेकिन सब विनाशी पिण्ड है। इनकी अपनी कोई स्वंतंत्र सत्ता नहीं बल्कि ये सब तो किस एक नियम से बंधे पिंड की भांति अपना अपना जड़धर्म निभा रहे है। 


अब खुद सोच के देखो एक अजर,अमर और अविनाशी ईश्वर के स्थान पर इन पैदा होने वाले और ख़त्म होने वाले धूल पत्थर के पिंडो को पूजकर तुम खुद के बीमारियों और तकलीफों से कैसे बच सकते हों? 

अतः आज से शपथ लो की इन ग्रह नक्षत्रों के चक्करों में पड़कर अपना मूल्यवान समय,पैसा और श्रम बर्बाद नहीं करोगे और अपने परिवार को भी इस बीमारी से बचाओगे।   

मैंने इस लेख के माध्यम से उन सभी धूर्तो को इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करने की चुनौती दी है या वेदादि सत्शास्त्रों से इनके ईश्वर से भिन्न अस्तित्व और फलाफल देने वाली सत्ता का प्रमाण बताने का अनुरोध किया है लेकिन अबतक किसी ने ये साहस नहीं किया है।