वैदिक ज्ञान


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सर्वशक्तिमान परमात्मा ने इस विश्व में प्रत्येक मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए अनेको ईशदूतों , पैगम्बरों और संतो को समय समय पर भेजा है। इस्लाम की मतावलंबियो के पास कुरान , ईसाइयों के पास बाइबल , यहूदियों के पास तौरात , सिक्खो के पास गुरुग्रंथ साहब , जैनो के पास त्रिपिटक , बौद्धो के पास धम्मपद जैसी महान मार्गदर्शक पुस्तके उपलब्ध है। इन पुस्तकों के बारे में कहा जाता है की यह सभी प्रत्यक्ष परमेश्वर की वाणियों और शिक्षाओं का सँग्रह है।

बात जब इन पवित्र धर्मशास्त्रो की आती है तो हिन्दुओं के पास अपना कहने के लिए अनेक पुस्तके है , वेद , उपनिषद , पुराण , ब्राम्हण , स्मृति , दर्शन और कथाओं का अपार भण्डार है। उसके आलावा भी अनेक लोक-संतो ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में विपुल धार्मिक और नैतिक साहित्य की रचना की है। संत तिरुवल्लुवर की तिरुकुरल , एकनाथ की एकनाथ-भगवत, ज्ञानेश्वर महाराज की ज्ञानेश्वरी , रामदास स्वामी की दासबोध, रसख़ान के दोहे, कबीर के बीजक और अनगिनत ग्रन्थ धर्म और अध्यात्म की अनोखी और महान धरोहर को समेटे हुए हमारे बीच में विद्यमान है। 

अगर किसी हिंदु धर्मावलम्बी से पुछा जाये की ग्रंथो के इतनी बड़ी लिस्ट होने के बाद भी अगर किसी एक किताब को सबसे ऊपर और सबसे अधिक प्रामाणिक और सम्मानित माना जाये तो वह कौन सी होगी? तो उत्तर बिना किसी शक के होगा - "वेद"।  "वेद" जैसा की सभी लोगो को सामान्य रूप से पता है - चार है । 



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१. ऋग्वेद २. यजुर्वेद ३. सामवेद ४. अथर्ववेद  , मोटे रूप में यही एक बात सभी को मालूम है लेकिन अगर प्रश्न हो की- वेदों का सन्देश क्या है? उसमे ऐसे कौन से सन्देश   है जो आज भी सारी दुनियाँ के लिए काम के हो सकते है? इस मामले में एक इंग्लिश मीडियम से पढ़ा हिन्दू नौजवान भी उतना ही अनजान और ग़ाफ़िल है जितना की कोई अन्य धर्म का व्यक्ति।

संस्कृत और गुरुकुलों का लुप्त होना, हिन्दू माता-पिता का बच्चों को नौकरी करके कमाने खाने लायक बना देने का एक मात्र उद्देश्य, धर्मग्रंथो के अध्ययन और चिंतन को बुढ़ापे का काम समझने की मानसिकता और भी अनेक ऐसे कारण है जिन्होंने हमे ही अपने इन महान ग्रन्थों से दूर और अनजान कर दिया। मैंने अनेकों धार्मिक आयोजनों में देखा है की पूजा के अवसर पर पण्डित द्वारा संस्कृत में बोले जाने वाले मंत्रो और सुनने वाले लोगो के बीच उतना ही अन्तर होने लगा है जितना चाइनीज़ भाषा न जानने पर आपको चाइनीज़ फ़िल्म दिखाना। न पंडित इसकी फ़िक्र करता है की इन मंत्रो से आप क्या समझे और न आप। सारा कार्यक्रम एक ही वाक्य के चारों और घूमता है - "पंडित जी , जरा जल्दी करिये।"


मैं समझता हूँ की हमारी इस मानसिकता ने हमारा काफ़ी नुकसान कर दिया है। वेदों में कर्मकाण्ड और देवताओं को प्रसन्न करके आशीर्वाद बरसाने वाले मन्त्र नहीं बल्कि मानव के मन को उच्चतम स्तर पर ले चलने वाली वो भावनाएँ और संदेश भरे है जिसका एक अंश भी मनुष्य को देवता के स्तर पर उठाने के लिए काफी है। वेदों के ऊपर आज इन्टरनेट पर अनेकों वेबसाइट है , सेकड़ो किताबें मौजूद है लेकिन पुस्तकों की कठिन भाषा, भारी भरकम शब्दों और अलंकारो , उपमाओं का प्रयोग करने से आज की नई पीढ़ी (जो दुर्भाग्य से न ठीक से इंग्लिश बोल पाती है और न ही संस्कृतनिष्ठ हिंदी समझ पाती है), इनसे ऐसे ही दुरी बनाये रखती है जैसे उजाले से चमकादड़।


अब सवाल यह था की या तो मैं सभी की हिंदी सुधारने का और संस्कृत सीखना का जिम्मा लूँ या फिर वेदों की उन ऋचाओं (संदेशों) को सरल हिंदी या हिंग्लिश मे, जो आज बहुसंख्य हिंदुस्तानियों की नई भाषा बन गयी है इस भाषा में सबसे सामने रखूँ । मुझे दुसरा रास्ता ही ज्यादा आसान और जल्दी परिणाम देने वाला लगा इसलिए अपना ये ब्लॉग नयी पीढ़ी को सौप रहा हूँ। हिंदुओ के अलावा अगर इस ब्लॉग को अन्य धर्मों के भाई-बहन भी पढ़े और मुझे अपने विचार भेजे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। आखिर में हम सब समझ पाएँगे की जो बाते कुरान, बाईबल, तौरात, ज़बूर, ग्रंथसाहब या और किसी भी धर्मग्रंथ है वही अपने शुद्ध रूप में वेदों में भी मौजूद है।


आप सभी की एक बार फिर से इस ब्लॉग को पढ़ने, फॉलो करने और शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। अगर इस विषय से मिलता हुआ कोई लेख आप मुझे शेयर करना और इस ब्लॉग में पब्लिश करवाना चाहे तो बेझिजक करे।


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वैदिक तलवार
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