नवग्रहों की उपासना करना कितना सही ? आइये जाने

क्या चन्द्र , मंगल , शनि , राहु , केतु भी ग्रहों के नाम नहीं परमेश्वर के नाम है ? फिर क्या नवग्रहों की उपासना करना ठीक नहीं ?

बिल्कुल नहीं। अरे यह ग्रह तो हमारे सौरमंडल के पिंड है , ऐसे करोड़ो अन्य ग्रह-नक्षत्र हमारे सौरमंडल में हो सकते है, ऐसे अनेकों सौरमण्डल हमारी एक मन्दाकिनी आकाशगंगा में है, और ऐसी कितनी ही आकाशगंगाएँ इस ब्रम्हाण्ड में है। और ऐसे कितने ही ब्रम्हाण्ड इस महाविश्व ब्रम्हाण्ड का हिस्सा बनकर अंतरिक्ष में टिके है। 

अरे भोले मनुष्यों जरा एक मिनिट के लिए सोचों; ये ग्रह जो खुद की और आ रहे विशाल उल्कापिंडो और अंतरिक्ष की छोटी से छोटी चट्टान को नहीं रोक सकते, जो अपने ऊपर लगने वाले ग्रहण को नहीं रोक सकते वो तुम्हारी परेशानियों और संकटों को क्या रोकेंगे? 

पोंगा पण्डित अपने उल्लू सीधे करने के लिए तुम्हे ग्रहबाधा, शनि की दशा और पाप ग्रहों की बातें बताकर तुम्हे मुर्ख बनाकर तुम्हारा मेहनत का धन लूट रहे है। पवित्र वेदों में, जहाँ कहीं भी मंगल, राहु, केतु आदि शब्दों का उल्लेख है वो परमेश्वर के ही गुण वाचक नाम है। ऋषि दयानंद ने अच्छी तरह इसे स्पष्ट किया है - देखों - 

सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य्य’ है।

यश्चन्दति चन्दयति वा स चन्द्रः’ जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है।

यो मंगति मंगयति वा स मंगलः’ जो आप मंगलस्वरूप और सब जीवों के मंगल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मंगल’ है।

यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः’ जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है।

यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः’ जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ ( गुरु) है।


यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः’ जो अत्यन्त पवित्र और जिसके संग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिये ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है।

यः शनैश्चरति स शनैश्चरः’ जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है।

यो रहति परित्यजति दुष्टान् राहयति त्याजयति स राहुरीश्वरः’। जो एकान्तस्वरूप जिसके स्वरूप में दूसरा पदार्थ संयुक्त नहीं, जो दुष्टों को छोड़ने और अन्य को छुड़ाने हारा है, इससे परमेश्वर का नाम ‘राहु’ है।

यः केतयति चिकित्सति वा स केतुरीश्वरः’ जो सब जगत् का निवासस्थान, सब रोगों से रहित और मुमुक्षुओं को मुक्ति समय में सब रोगों से छुड़ाता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘केतु’ है। ( साभार - सत्यार्थ प्रकाश ) 

पहली बार मनुष्य जब चाँद की यात्रा के सपने देख रहा था हमारे देश के ज्यातिषियों और पोंगे पंडितो को हँसी आ रही थी। अनेकों ने इस कार्यक्रम के असफल होने की जोरदार घोषणा की। जैनों और हिंदु धर्म के ग्रंथो में तो चंद्र को देवता कहा गया है, और देवता पर पैर रखने का दुस्साहस एक मनुष्य करे, इस कैसे हो सकता था? 


लेकिन सबके देखते देखते अमेरिका के नौजवान अपने विज्ञान के दम पर चाँद पर अपना झंडा भी गाड़ कर आ गए, फिर रूस, चीन और अब तो भारत भी। लेकिन लक़ीर के फ़क़ीर कुछ लोग आज भी चाँद को देवता मानकर उसकी पूजा कर रहे रहे है। 

अब आते है शनिदेव के मुद्दे पर: आजकल सबसे ज्यादा डिमांड और टीआरपी अगर किस ग्रह की है तो शनिदेव की। क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या अमीर, क्या ग़रीब, शनि की टेढ़ी नज़र से सब डरते है। शनि की साढ़े साती और अढेय्या से सबकी नींद उड़ जाती है। और जब डर का इतना बड़ा मार्केट हो तो उसे भुनाने वाले दुकानदार तो आ ही जाते है। 

गंडा, ताबीज, यंत्र,कवच, माला, हवन, पूजा-अभिषेक, रत्न-नग  क्या क्या शनि के नाम पर नहीं बिकता। गाँव में शनिदेव की टोकरी लेकर फिरने वाले से लेकर शनिदेव के बड़े बड़े धाम के महन्तो तक शनिदेव के प्रतिनिधि आपकी जेब के हिसाब से आपको चूना लगाते है।  

आइये अब ज़रा,इन शनिदेव की कुछ असली-नकली कहानियों को पढ़ते है-  

१. ये शनिदेव जब हनुमान जी के सर पर जा बैठे तो हनुमान ने अपने सिर पर बड़े बड़े पहाड़ रखना शुरू कर दिया, पहाड़ के वजन से कचूमर बनते हुए शनिदेव ने हनुमान जी के बड़े हाथ पैर जोड़े और क्षमा माँगी और कहाँ की ये पहाड़ मुझपर से हटाइये मैं कभी श्रीराम के भक्तो को नहीं सताऊँगा । फिर अपने शरीर पर हुए घावों को ठीक करने के लिए आज तक तैल डलवाते रहते है । 
( पूरी कहानी पढ़े - http://kathapuran.blogspot.in/2012/10/blog-post_2291.html ) 

अब मज़े के बात ये है की जो दो चार पहाड़ो के वजन से टै बोल दिए वो शनिदेव से आप अपने दुर्भाग्य के वजन हटाने को कह रहे है? क्या यह संभव है? 

दूसरी बात जो हनुमान जी के वानर होने के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके, न साढ़ेसाती चली न ढईया और उलटे पैर भागे वो क्या भगवान के स्थान पर पूजा करने लायक है? 

२. ब्रह्म पुराण में शनि कथा : ब्रम्हपुराण की माने तो शनिदेव श्रीकृष्ण के परम भक्त थे! एक दिन जब वे श्रीकृष्ण का ध्यान कर रहे थे उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उनके पास आई लेकिन उन्हें हरवक्त ध्यान करते देखकर नाराज़ हो गई। गुस्से में उसने शनिदेव को शाप ही दे दिया कि तुम जिसकी और देखोगे वह नष्ट ही हो जायेगा। तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। (देखें http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%BF_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5 ) 


 अब ज़रा सोचे एक तो साफ़ पता चलता है की शनिदेव खुद श्रीकृष्ण की भक्ति करते है ? और कलयुग के कृष्णभक्त है की हर शनिवार को हाथ में तैल की बोतल लेकर शनिमंदिरों के आगे कतार लगा कर खड़े रहते है।  दूसरी बात जो खुद को अपनी पत्नी के शाप से नहीं बचा सके क्या वो आपके शाप (संकट) दूर करेंगे ?

और कुछ शास्त्रों के उदाहरण देखें 

" एक बार पिप्पलाद मुनि की बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। बड़े होने पर उनको ज्ञात हुआ कि उनकी पिता की मृत्यु का कारण शनि है तो उन्होंने शनि पर ब्रह्मदंड का संधान किया। उनके प्रहार सहने में असमर्थ शनि भागने लगे। विकलांग होकर शनि भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्पलाद मुनि को बोध कराया कि शनि तो केवल सृष्टि नियमों का पालन करते हैं। यह जानकर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा कर दिया।" 

वाह क्या गज़ब है शनिदेव, भारत के एक ऋषि के डर से भागकर भगवान शिव के पास जा पहुँचे। और आज ऋषियों की संतानें उसी शनि के डर से ज्योतिषियों के डेरे पर भाग रही है!! यही घोर अँधकार है। 

शनि देव के विषय में यह कहा जाता है कि-
  • शनिदेव के कारण गणेश जी का सिर छेदन हुआ।
  • शनिदेव के कारण राम जी को वनवास हुआ था।
  • रावण का संहार शनिदेव के कारण हुआ था।
  • शनिदेव के कारण पांडवों को राज्य से भटकना पड़ा।
  • शनि के क्रोध के कारण विक्रमादित्य जैसे राजा को कष्ट झेलना पड़ा।
  • शनिदेव के कारण राजा हरिशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी।
  • राजा नल और उनकी रानी दमयंती को जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ा था। 
अब एक बात और सोचिये क्या गणेश जी या शिवजी शनि के उपाय (शांति) नहीं कर सकते थे ? श्रीराम का अपने वचन पर दृढ रहना और उसकी रक्षा के राजपाट परिवार छोड़कर वन चले जाने का आदर्श अधिक प्रेरणादायी है या शनिदेव की टेढ़ी नज़र। अगर शनिदेव रावण पर प्रसन्न होते तो क्या रावण, सीता अपहरण जैसे निंदनीय कर्मों को करने के बाद भी अवध्य रहता?  

शनिपूजा ने नाम पर हो रही अंधभक्ति का कारोबार देखे तो खुद शनैश्वर देवस्थान ट्रस्ट शिंगणापुर महाराष्ट्र की वेबसाइट पर लिखा है - (http://www.shanidev.com/hin/the-wondrous-temple-of-the-world.html) 

  • हररोज यहाँ कम से कम एक लाख का कारोबार सम्पन्न होता है |
  • आचार्य उदासी बाबा के काल में शनि भगवान के दर्शन के लिए केवल तिन लोग, वे भी केवल शनिचर को आते थे अब रोजाना करीब १३००० लोग आते है |
  • श्री शनिदेव को तेल समर्पित करने के लिए अनगिनत आते है, कभी १०१ डिब्बे, तो कभी एक क्विंटल, तो एकआधबार एक टैंकर  तैल भी आता है। 
ज्ञानीजन अब खुद ही सोचें की कहाँ से कहाँ हम आ पहुँचे है, नवग्रहों के डर से. 

अब देखें इनके पिता सूर्य देव के कारनामे जिनके बारे में पोंगे पंडित सूर्य निर्बल है कहकर भोले लोंगो को उल्लू बनाते है- 

स्कंध पुराण के काशीखण्ड के अनुसार सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा थी, लेकिन उसने अपने योग से छाया नाम की कन्या को जन्म दिया( जन्म देने के हिसाब से संज्ञा तो छाया की माँ होनी चाहिए और सूर्य छाया के कानूनी पिता) लेकिन संज्ञा ने छाया को सूर्यदेव के सेवा में नियुक्त कर खुद अपने मायके चली गयी। अब सूर्यदेव जैसे महान देवता को अपनी पत्नी संज्ञा और कानून पुत्री छाया में कोई अंतर ही नहीं दिखा और पुत्री छाया के साथ भी उन्होंने तीन बच्चों को जन्म दे दिया, जिसमे से एक शनिदेव थे! 

एक और कथा के हिसाब से -जब शनि का जन्म हुआ तो पिता सूर्यदेव शनि को काले रंग का देखकर हैरान हो गए | उन्हें छाया पर शक हुआ | उन्होंने छाया का अपमान कर डाला , कहा कि 'यह मेरा बेटा नहीं है |' श्री शनिदेव ने देखा कि मेरे पिता , माँ का अपमान कर रहे है | उन्होने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा , तो पिता कि पूरी देह का रंग काला सा हो गया । 

आप खुद ही सोचें सबको ज्ञान देने वाले सूर्यदेवता अपने बच्चे को भी नहीं पहचान सके। देवता होकर गोरे-काले के रँगभेद में पड़ गए। पत्नी का अपमान कर दिया, क्या ये देवता है? और मज़े की बात तो यह की शनिदेव के पैदा होते ही यह सब समझ भी लिया और ग़ुस्से से अपने पिता को ही काला कर दिया। अब  ये जो सूर्यदेव आपके कष्टों को दूर करने चले थे अपने पुत्र के कारण खुद ही कष्ट में पड़ गए थे तो आपकी क्या मदद करेंगे आप ही सोचे? 

अब जानते है टीआरपी में दूसरे नंबर पर आने वाले 'मंगल ग्रह' की , जिसके आने से शादियाँ तक रुक जाती है, भोली लड़कियों की शादी कभी पेड़ से तो कभी कुत्ते से करवाते है फिर दूसरी शादी दूल्हे से, वो भी बड़ी बड़ी शान्ति करके। 

देवी भागवत् पुराण के अनुसार जब विष्णु वराह अवतार पूरा कर वापस जाने लगे तो धरती ने उनसे पुत्र की इच्छा की और वराह अवतार ने धरती की कामना पूरी कर दी फिर मंगल का जन्म हुआ लेकिन जब उन्हें पता लगा की उनके पिता उनकी माता को छोड़कर चले गए इसलिए मंगल वैवाहिक जीवन में दूरियां पैदा करते हैं। दुर्घटना और रक्तपात की घटनाएं करवाते हैं। (देखे http://www.amarujala.com/spirituality/religion/mars-story-in-puran)  

अब ज़रा मंगलवार व्रत की कथा की गप्प को पढ़े - इस व्रतकथा की नायिका रत्नावली कहानी के आखिर में मंगल देवता से बोली- 'हे ग्रहों के स्वामी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो भी मनुष्य मंगलवार के दिन प्रातः काल लाल पुष्प, लाल चन्दन से पूजा करके आपका स्मरण करे उसको रोग-व्याधि न हो, स्वजनों का कभी वियोग न हो, सर्प, अग्नि तथा शत्रुओं का भय न रहे, जो स्त्री मंगलवार का व्रत करे, वह कभी विधवा न हो।''
मंगलदेव -'तथास्तु' कह कर अन्तर्ध्यान हो गये। 

अब क्या आप मंगलदेवता के व्रत से अजर अमर हो गए ऐसे पांच-दस पतिदेव और ऐसी महान नारियाँ ढूंढकर ला सकते है? अगर संसार के सब रोग व्याधि मंगलवार व्रत से ही ठीक हो जाये तो सारे विश्व में अस्पतालों और औषधि केंद्रों की क्या जरूरत? इस हिसाब से हर अस्पताल और औषधालय तोड़कर वहाँ मंगल देवता के मन्दिर ही बनने चाहिए और चिकित्सा विद्यालयों में चिकित्सा और रोग निदान की मोटी मोटी पुस्तकों के स्थान पर मँगलवार व्रत कथा की पतली की क़िताब पर ही प्रेक्टिस करनी चाहिए।   सर्प, अग्नि और शत्रुओं से भी अभय केवल मंगलवार का व्रत करने से ही हो सकता है तो सरकार को देश में अरबो रुपए सेना रखने में न खर्च करके सीमा पर मंगलवार का व्रत करने वाले और कथा सुनाने वाले पण्डितों को ही रख देना चाहिए। इतना सरल उपाय है। 

अब ज़रा राहु केतु पर विचार करे , अव्वल तो सौरमंडल में ऐसे कोई ग्रह है ही नहीं लेकिन जब धूर्त ज्योतिषियों की पोल खुली तो उन्होंने इन्हें छाया ग्रह कहकर अपनी इज्जत बचा ली । खैर ज़रा इनकी करतूतों पर नज़र डाले - एक राक्षस जो धूर्तता से अमृत पीने के लालच में देवताओं का रूप बनाकर उनकी कतार में बैठ गया और विष्णुजी के चक्र से कटकर राहु और केतु के रूप में विख्यात हो गया उसी बहरूपिये राक्षस को अब हम लोग नवग्रहों के प्रतिष्ठित देवता के रूप में प्रणाम करते है, पूजा पाठ और जप करते है। जहाँ ईश्वर को पूजना चाहिये था वहाँ इस राक्षस की पूजा करते है -कितने शर्म की बात है!  

अब आइये आपको इस गोरखधंधे से जुड़े व्यवसाय के बारे में बताते है- 
आज हमारे देश में नवग्रह पूजा और यंत्र बेचने के धंधे में सैकड़ो वेबसाइट लगी है उनमे से google के पहले पेज़ पर आने वाली कुछ प्रमुख वेबसाइट पर लगे रेट देखिये - 

वेबसाइट : http://www.astrojyoti.com/navagrahapoojas.htm

1.Graha Shanti pooja of any one planet: Cost: INR. 3,500/- 
2.Navagraha pooja: Cost: INR. 3,500/-
3.Birth day Nakshatra Shanti Homa: Cost: INR. 4,500/-
4. Navagraha Homam:Cost: INR. 7,500/- 
5.Nakshatra Shanti Homam:Cost: INR. 9,000/-
6 .Graha Shanti Homam – One Planet – 54,000 Recitals : Cost: INR. 58,000/- 
7.Graha Shanti Homam – One Planet – 108,000 RecitalsCost: INR. 100,000/-  

ऐसे ही सैकड़ो संस्थान इस काम में लगे हुए है। एक पल के लिए सोचिये जिस देश के २३ प्रतिशत से भी अधिक जनता गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुज़ारती है उनके लिए यह नवग्रह पूजा करना क्या संभव है? और बिना इसके क्या उनके जीवन दुर्भाग्य से ही भरे रहेंगे? 

क्या हमारे वेद और उपनिषद इस तरह की "पैसा फेकों - तमाशा देखों"  की मानसिकता पर आधारित थे।  

नवग्रह के मार्केट से जुड़ा एक और बेहद अहम् हिस्सा है अँगूठी और रत्नों का , आइये ज़रा उसकी भी पड़ताल कर ले : 

google पर  gems for navgrah लिखकर सर्च करने से पहले पेज़ पर आई कुछ वेबसाइटों में से एक है http://www.astrologypredict.com/gemstone-category.php?page=Ruby%20Stone 

इस वेबसाइट पर नवग्रह सम्बंधित कुछ रत्नों की क़ीमत देखे : 

५ रत्ती का सूर्य का रत्न रूबी : कीमत Rs 16250
३ रत्ती का चंद्र का रत्न मोती : कीमत 9750 
२ रत्ती के शनि का रत्न नीलम : कीमत 6500 

क्या कोई मजदूर या निम्नवर्गीय व्यक्ति इन्हें पहनने के सपने भी देख सकता है?  

और सवाल ये नहीं है की इनका ग्रहो से सम्बन्ध है , बात तो दरअसल ये है कि जिस मंच पर इतना बड़ा लाखों करोडों का व्यवसाय चल रहा हो उस मुद्दे की असलियत के लिए कौन लड़ना चाहेगा।  

इन सब बातों से समाज के ग़रीब को यही सन्देश जाता है की हमारे बस में तो सिर्फ दुर्भाग्य ही बदा है क्योकि इसका उपाय एक परमेश्वर की भक्ति कर आत्मविश्वास और पुरुषार्थ की प्रेरणा पाना नहीं , इन ग्रह नक्षत्रों के नग पहनना और मोटे चढ़ावे चढ़ाना है । 

आज तो NASA ने सिद्ध कर दिया है की सूर्य सहित अन्य ग्रहों का जन्म और मृत्यु निश्चत होती है। कुछ, लाखों सालो में तो कुछ, करोडों सालो में लेकिन सब विनाशी पिण्ड है। इनकी अपनी कोई स्वंतंत्र सत्ता नहीं बल्कि ये सब तो किस एक नियम से बंधे पिंड की भांति अपना अपना जड़धर्म निभा रहे है। 


अब खुद सोच के देखो एक अजर,अमर और अविनाशी ईश्वर के स्थान पर इन पैदा होने वाले और ख़त्म होने वाले धूल पत्थर के पिंडो को पूजकर तुम खुद के बीमारियों और तकलीफों से कैसे बच सकते हों? 

अतः आज से शपथ लो की इन ग्रह नक्षत्रों के चक्करों में पड़कर अपना मूल्यवान समय,पैसा और श्रम बर्बाद नहीं करोगे और अपने परिवार को भी इस बीमारी से बचाओगे।   

मैंने इस लेख के माध्यम से उन सभी धूर्तो को इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करने की चुनौती दी है या वेदादि सत्शास्त्रों से इनके ईश्वर से भिन्न अस्तित्व और फलाफल देने वाली सत्ता का प्रमाण बताने का अनुरोध किया है लेकिन अबतक किसी ने ये साहस नहीं किया है।