Selected Verses of Vedas in Hindi 121-140

इस संसार में हर तरफ परमात्मा की सत्ता समाई हुई है| यह जानकर जो दूसरों के धन को नहीं छिनता और दबाता है वह धर्मात्मा पुरुष इस लोक में सुख और परलोक में मोक्ष प्राप्त करता है|
यजुर्वेद 40/1


हम ईश्वर के बनाए नियमों से ही धन कमाए। बेईमानी का धन हम से दूर रहे| गलत तरीकों से कमाया धन हम ना रखें। धर्म से कमाओ और धर्म में खर्च करो|
ऋग्वेद 1/1/3


न्याय और परिश्रम की कमाई ही मनुष्य को सुख देती है, फलती फूलती और मन को प्रसन्न रखती है|  इससे आत्मा निर्मल और पवित्र रहती है, पौरूष बढ़ता है और सत्कर्मों की प्रेरणा मिलती है| चोरी और छल -कपट से कमाया हुआ धन सदैव दुख देता है| वेद
ऋग्वेद 21313

Selected Verses of Vedas in Hindi 121-140

इस संसार में हर तरफ परमात्मा की सत्ता समाई हुई है| यह जानकर जो दूसरों के धन को नहीं छिनता और दबाता है वह धर्मात्मा पुरुष इस लोक में सुख और परलोक में मोक्ष प्राप्त करता है|
यजुर्वेद 40/1


हम ईश्वर के बनाए नियमों से ही धन कमाए। बेईमानी का धन हम से दूर रहे| गलत तरीकों से कमाया धन हम ना रखें। धर्म से कमाओ और धर्म में खर्च करो|
ऋग्वेद 1/1/3


न्याय और परिश्रम की कमाई ही मनुष्य को सुख देती है, फलती फूलती और मन को प्रसन्न रखती है|  इससे आत्मा निर्मल और पवित्र रहती है, पौरूष बढ़ता है और सत्कर्मों की प्रेरणा मिलती है| चोरी और छल -कपट से कमाया हुआ धन सदैव दुख देता है| वेद
ऋग्वेद 21313

Selected Verses of Vedas in Hindi, Know Vedas 101-120

सभी लोग एक संकल्पवान हो, सभी के ह्रदय एक हो, मन एक हो ताकि कोई दुखी न रहे|
ऋग्वेद 10/191/4


हमारे मन की शक्ति अनंत है| वह जागते और सोते हुए भी सदैव काम करता रहता है| वह ज्योति स्वरुप है किंतु बुरे संस्कारों की परतों से ढका है | ऐसा हमारा मन, शुभ एवम कल्याणकारी विचारों वाला हो|
यजुर्वेद 34/1


मन से ही पारलौकिक साधन तथा अलौकिक सुख प्राप्त होता है| यह प्राणी मात्र के भीतर रहता है इसलिए हमारा मन हमेशा शुभ और कल्याणकारी विचारों में लगा रहे|
यजुर्वेद 34/2

हमारा मन उत्कृष्ट ज्ञान, चिंतनशीलता, तथा धैर्य आदि सदगुणों से युक्त है| वह अँधकार अर्थात बुरे कामों की ओर न बढ़े, इसलिए हमारा मन शुभ एवं कल्याणकारी विचारों वाला हो|
यजुर्वेद 34/3


जो कभी ख़त्म न होने वाले - भूत, भविष्य और वर्तमान का योग साधन द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे जीवन के संपूर्ण कार्य अच्छी तरह पूरे होते हैं, वह हमारा मन शुभ और कल्याणकारी विचारों वाला हो।
यजुर्वेद 34/4


हे मनुष्यों, तुम्हारा मन स्वच्छ हो, अंतःकरण धर्म और सदाचार से पवित्र हो ताकि तुम ब्रम्हविद्या और व्यवहारिक ज्ञान उपलब्ध कर सको|
यजुर्वेद 34/5


जिस प्रकार सारथी(रथ चलाने वाला) अपने दसों घोड़ो को अपने काबू में रखकर रथ चलाता है, हे मनुष्यों उसी प्रकार तुम भी अपने मन द्वारा दसों इन्द्रियों को अपने काबू में रखो| इसके लिए तुम्हें संकल्पवान होना पड़ेगा।
यजुर्वेद 34/6


जिस प्रकार सूर्य, पृथ्वी एक ही नियम व्यवस्था से वर्षा, प्रकाश और अन्य शक्तियों के द्वारा सभी का हित संपादन करते हैं, वैसे ही मनुष्यों को भी चाहिए कि वह इन्द्रियों को नियमित बनाकर लोकमंगल के कार्यों में लगे और स्वयं अपराधों से बचने का प्रयत्न करता रहे|
अथर्ववेद 7/112/1


मन की अवस्था इन्द्रियों के बर्ताव के अनुरूप होती है| यह मनुष्य के हाथ की बात है किइन्द्रियों का चाहे सदुपयोग करें ,चाहे दुरुपयोग। सदैव इन्द्रियों की उत्तेजना से बचने का प्रयत्न करना चाहिए।
अथर्ववेद 19\9\5


यह संसार शुभ, मंगलदायक और मधुर पदार्थों से भरा पड़ा है, किंतु ये मिलते हैं उन्हीं को हैं जो सब कर्मों द्वारा उनका मूल्य चुकाने को तैयार रहते हैं|
ऋग्वेद 9/83/1

Selected Verses of Veda in Hindi 81-100

हे मनुष्यों तुम्हारी आत्मविश्वास की शक्ति बड़ी प्रबल है|  तुम्हारे निश्चय को कोई मिटा नहीं सकता। साधारण विघ्नों की तो बात ही क्या; बड़े-बड़े पर्वत तक तेरी राह रोक नहीं सकते। तू सूर्य से भी अधिक बलवान है|
ऋग्वेद 10/27/5

श्रद्धा, मन की उच्च भावना का प्रतीक है| इससे मनुष्य का आध्यात्मिक जीवन सफल होता है और वह धन पाकर कर सुखी होता है|
ऋग्वेद 10/151/4

दूसरों के आशीर्वाद या उपदेश से किसी की धैर्य सिद्धि कदापि नहीं हो सकती इसके लिए स्वयं अपने शरीर ,मन और आत्मा से सत्कर्म तथा लोगो की भलाई के काम करने होंगे।
यजुर्वेद 23/15

विद्वान,तत्वदर्शी तथा आत्मज्ञानी लोग जिस मेधावी बुद्धि के द्वारा संसार में श्रेष्ठ कर्मों को पूरा करते हैं| ईश्वर हमें भी वह मेधा बुद्धि प्रदान करें।
यजुर्वेद 32/14

सँसार की विचित्रता को ध्यान में रखकर हमेशा सत्य बोले और आत्मबल प्राप्त करे।
अथर्ववेद 4/9/7


हे मनुष्यों, तुम्हारी आत्मा सूर्य के समान तेजस्वी, प्रकाशमान एवम महान है| अपनी शक्ति को पहचानो। देखो, तुम्हारी महिमा कितनी विशाल है|
अथर्ववेद 13/2/29

आत्म कल्याण की इच्छा करने वाले पुरुष को पहले तप की दीक्षा दी जाती है| इससे शरीरबल, मनोबल तथा पद प्रतिष्ठा मिलती है और सुख प्राप्त होता है|
अथर्ववेद 19/41/1


मैं अकेला ही दस-हज़ार के बराबर हूँ | मेरा आत्मबल, प्राणबल, दृष्टि और सुनने की शक्ति भी दस-हज़ार मनुष्यों के बराबर है मेरा अपमान और विहान भी दस-हज़ार के बराबर है| मैं सारा का सारा दस-हज़ार मनुष्यों के बराबर हूँ |
अथर्ववेद  19/51/1  

मनुष्य की इन्द्रियाँ कभी एक ही दिशा में स्थिर नहीं रहती| अवसर मिलते ही अपने विषयों(भोगो) की ओर दौड़ती है, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह इन्द्रियों के विषयों के प्रति सदेव सावधान रहें|
ऋग्वेद 6/9/6


मैं अपने कुविचारों को सदैव दूर रखूँगा इनसे अपना विनाश नहीं करूँगा| मेरे मन की शक्ति और सामर्थ्य अपार है, इसे बर्बाद नहीं करूँगा|
ऋग्वेद 10/164/1


तुम्हारा मन कभी भी बुरे विचारों में भटक नहीं पाए इसलिए उसे सदैव किसी न किसी काम में लगाए रहो अर्थात उसे बेकार न बैठने दो|
अथर्ववेद 6/45/1

Selected Verses of Vedas in Hindi, Know Vedas 61-80

हे परमात्मा मेरे हृदय में भक्ति भाव और कर्मठता का विकास हो| मुझे आरोग्य और पवित्र जीवन प्राप्त हो| मुझे सभी ओर से पवित्र बनाइये।
अथर्ववेद 6/19/2


हे मनुष्यों! तुम्हें अपनी वर्तमान अवस्था में ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। तुम आगे बढ़ो और शरीर तथा आत्मबल के द्वारा पुरुषार्थ प्राप्त करो|
अथर्ववेद 8/1/4


समाज में सम्मान उन्हें मिलता है जो ईश्वर और गुरुजनों की शिक्षा को मानकर कठिनाइयों में भी आगे बढ़ते रहते हैं। उन्हीं की सर्वत्र प्रशंसा होती है।  
अथर्ववेद 8/1/6

इस संसार में उन्नति वे लोग करते हैं ,जो परमात्मा तथा विद्वानों से प्रेम करते हैं, सत्यकर्मी, ज्ञानी और जितेंद्रिय होते हैं। अभी तक ऐसा ही हुआ है और आगे भी ऐसा ही होगा।
अथर्ववेद 12/1/1


मनुष्य जीवन की सफलता इस बात में है कि वह आर्थिक और मानसिक दोषों को त्यागकर निर्मल और पवित्र बने। आत्मा मल विक्षेप आवरण से रहित बने इसके अनेक उपाय वेदों में वर्णित हैं। अतः वे पठनीय है।
सामवेद 1/30/2


मनुष्य अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त करें इसका एक ही उपाय है और वह है सदाचरण।  हम धर्म पर चलते हुए सौ वर्ष तक जीने की कामना करें
यजुर्वेद 40/2
 
समस्त प्रकार के यश के लालच की भावना से हम दूर हों,  क्योंकि इससे हमारी आत्मा पतित होकर दुख पाती है।
ऋग्वेद 1/25/21


आत्म ज्ञान प्राप्त करना मानव जीवन का मूल लक्ष्य है| यह संसार कैसे बना? पदार्थों का आदि कारण क्या है? शरीर और उसमें खून,माँस,हड्डियों की विचित्रता और उसकी आत्मा से उसके अगल होने आदि का ज्ञान मनुष्य को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।


ऋग्वेद 1/64/4


मनुष्य अपने आप को भी नहीं जानता यह कितनी बड़ी भूल है|  उसे भाषा, साहित्य आदि की जो क्षमता प्राप्त है उससे शरीर और जीव आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
ऋग्वेद 1/164/37


दुख का प्रमुख कारण है- मनुष्य का अज्ञान।  इसलिए उसे बड़ी मेहनत से आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इसीसे संपूर्ण कामनाये शांत होती है।
ऋग्वेद 7/ 89/ 4


मन और बुद्धि (अंतः करण) यदि मैला और अपवित्र बना रहे तो परमात्मा की उपासना भी बलवती नहीं होगी।  अतः ईश्वर की उपासना निष्पाप ह्रदय से करें।

ऋग्वेद 8/61/11

Selected Verses of Vedas in hindi, Know Vedas 41-60

जिस राष्ट्र का हमारे पूर्वजों ने निर्माण किया है और दुष्टों से रक्षा की है, उसके निर्माण के लिए हम अपना त्याग और बलिदान करने को तैयार रहें।
अथर्ववेद 12/1/5


राष्ट्र के निर्माण के लिए हम सब नागरिक कर्मशील और जागरुक हो। आलसी और सुस्त व्यक्ति जिस देश में होते हैं वह देश गुलाम हो जाता है।
अथर्ववेद 12/1/7


ब्राह्मणों को चाहिए कि स्वयं सावधान होकर अपने यजमानों को गलत कामों की ओर जाने से रोके जिससे सब का भला हो और सब की आयु, प्राण, धन, धान्य, कीर्ति, सुख, शांति बढ़े।
अथर्ववेद 19/63/1


जहॉं ज्ञान द्वारा अच्छे कामो को करते रहना जरूरी है वहाँ शस्त्र द्वारा दुष्टों का नाश भी जरूरी है। ज्ञान और कर्म के मिलने से ही पूरी तौर पर आध्यात्मिक जीवन बनता है। ब्राह्मण वर्ण का ज्ञान और क्षत्रिय वर्ण का तेज जहाँ साथ साथ रहेगा वह समाज सदैव फलता फूलता रहेगा।
यजुर्वेद 20/25


जो जागृत हैं और आलस्य प्रमाद से सदैव सावधान रहते हैं उन्हीं को इस संसार में ज्ञान और विज्ञान प्राप्त होता है।  उन्हीं को शांति मिलती है।  वे ही महापुरुष कहलाते हैं।
ऋग्वेद 5/44/14


आलसी व्यक्ति सदैव दुःख पाते हैं इसलिए हम सबको कर्म प्रधान और उद्योगी बनना चाहिए।
ऋग्वेद  8/12/18


आलस्य और व्यर्थ वार्तालाप से बचने के लिए सदैव काम में लगे रहना चाहिए। हम दुर्गुणों से दूर रहें, श्रेष्ठ संतानों को जन्म दें, और सभी और हमारे ज्ञान की चर्चा हो|
ऋग्वेद 8/48/14


आलस्य को त्यागकर मेहनत करने वाले बनो, मुर्खता त्यागकर वेद ज्ञान प्राप्त करो, मधुर बोलो और आपस में मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करो|  इसी से इस दुनियाँ में और स्वर्ग में सुखों की प्राप्ति होगी।
यजुर्वेद 3/47


समुद्र को पानी की कोई इच्छा नहीं होती तो भी उस में अनेक नदियाँ मिलती रहती है| इसी प्रकार मेहनती लोगो की सेवा में लक्ष्मी सदैव खड़ी रहती है, अर्थात जो लोग मेहनत करते हैं, कोशिश करते हैं उन्हें कभी धन की कमी नहीं  सताती।
ऋग्वेद 6/19/5


मनुष्य को चाहिए कि वह संघर्ष से घबराये नही और परमात्मा की उपासना करते हुए अपनी आत्मा और शरीर को बलवान और पुष्ट बनावे जिससे संसार में कोई उन्हें परेशान न कर सके।
अथर्ववेद 5/3/1

मनुष्य तू सदैव ऊँचा उठ (प्रगति कर ) यही तेरा धर्म है| जैसे चींटी आदि छोटे-छोटे जीव भी ऊपर चढ़ने में लगे रहते हैं वैसे ही तू भी उन्नति के उपायों को जानकर सदा बढ़ता रहे|
अथर्ववेद 5/30/7

Selected Verses of Vedas in Hindi, Know Vedas 20-40

हमारे सैनिक बलशाली हो, दुश्मन को हराने(शत्रु मर्दन) की योग्यता रखते हों और सदैव प्रसन्न रहने वाले हो| उनके हथियार ख़राब ना हो, देश की में वे, अपने फ़ायदे को बलिदान कर देने को तैयार रहें।
अथर्ववेद 4/31/1


भूमि पर पेट पालन करनेवाला किसान होता है अतः समाज में उसको श्रेष्ठ स्थान मिले। पढ़े-लिखे लोग ही अच्छे किसान हो सकते हैं।
ऋग्वेद 10/101/5


सच्चा उपदेशक वही होता है जो जैसा आत्मा में हों वही मन में, जो मन में हो वही वाणी के द्वारा व्यक्त करें। अर्थात जो स्वयं आचरण में लाएं वही उपदेश करें जिससे सभी लोगों में विद्या, बल व धन का उत्कर्ष हो| यही सदुपदेश है|
ऋग्वेद 5/44/6


विद्वान पुरुषों को चाहिए कि वह सत्य और ज्ञान के सदुपदेश से लोगों को ऐसे ही सुखी बनावे जैसे गाय अपने दूध से अपने पालने वाले को सुखी बनाती है।
ऋग्वेद 5/5/2


संसार का सर्वश्रेष्ठ दान ज्ञानदान है क्योंकि चोरी से चुरा नहीं सकते ना ही कोई इसे नष्ट कर सकता है। यह निरंतर बढ़ता रहता है और लाखों को स्थाई सुख देता है।
ऋग्वेद 6/28/3, अथर्ववेद 4/21/3

जिस समाज में अधिक से अधिक लोग एक मन, विचार और संकल्प वाले होते हैं वह समाज उन्नतिशील होता है।वहॉं लोग तेजस्वी होते हैं।
ऋग्वेद 10/101/1  

हमारा हृदय, मन और संकल्प एक हों -जिससे हमारा संगठन कभी न बिगड़े।
ऋग्वेद 10/191/4


सभी मनुष्यों के विचार समान हों , सब संगठित होकर रहे| सबके मन, चित्र तथा यज्ञ कार्य समान हो अर्थात सब मिलजुल कर रहे|
ऋग्वेद 10/191/3


मैं ब्राह्मण, स्वयं ज्ञान से संपन्न होकर अपने मन को काबू में रखते हुए (मनोनिग्रहपूर्वक) अपने यजमानों को ऊँचा उठाने का प्रयत्न करता रहूँगा।  वह बुरे कर्मो की ओर ना बढ़े, किसी के हितों का अपहरण न करें, इसका ध्यान रखूँगा ।
अथर्ववेद 3/19/3

जहाँ ब्रह्म, देवताओं का, वेद  विद्या का निरादर होता है वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है वहाँ कोई तेजस्वी तथा वीर नहीं होता।
अथर्ववेद 5 /19/ 4


जिस राष्ट्र में ब्राह्मणों को,विद्वान लोगो को सताया जाता वह वह राज्य ज्ञानहीन होकर नष्ट हो जाते हैं।
अथर्ववेद 5/19/6

Selected Verses of Vedas in Hindi, Know veda 1-20


परमात्मा की अनेक शक्तियाँ ही अनेक देवताओं के नाम से पुकारी जाती है| पर वह (परमात्मा) एक ही है| इसलिए गुण,कर्म, स्वभाव के अनुसार उस परमात्मा की उपासना करें|
ऋग्वेद 1/ 164/ 46

विद्वान लोग अपने ज्ञान से, चिंतन-मनन से और अनुभव से यह जान लेते हैं कि परमात्मा प्रत्येक पदार्थ में छिपा हुआ है| वही सारी दुनियाँ को सहारा (आश्रय ) देने वाला है उसी से सारी दुनियाँ (सृष्टि)पैदा होती है सभी प्राणी उसी से पैदा होते हैं और आख़िर (प्रलय काल) में उसी मे समा (लीन हो) जाते हैं|
यजुर्वेद 32 /8

हे ईश्वर आप सदैव सबके साथ न्याय करते हैं, दुष्ट और बुरा काम करने वाले लोगों (दुराचारी पुरुषों को) तथा विघ्नकारक तत्वों को आप अपनी शक्ति (प्रज्ज्वलित ज्वालाओं) से नष्ट कर दें और जो धर्मात्मा है आपकी स्तुति करते हैं, उपासना करते हैं, उनको बल व ऐश्वर्य प्रदान करें|
सामवेद 22

परमेश्वर कभी किसी के कर्म को ख़त्म (निष्फल) नहीं करता और ना किसी बेगुनाह (निरपराधी) को दंड देता है| इस जन्म में और अगले-पिछले हर जन्म  में हर मनुष्य के लिए कर्म फल की व्यवस्था कर दी गई है|

सामवेद 300

हे मनुष्यों ईश्वर पर आस्था रखो और सदैव यह प्रयत्न करते रहो कि परोपकार के द्वारा सँसार में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पद को प्राप्त करो|
अथर्ववेद 16/19/4

हे परमेश्वर! तू तेज स्वरूप है; मुझे तेज दे| तू अत्यंत वीर (वीर्यवान) है; मुझे पराक्रम दे| तू बलवान है; मुझे बल दे| तू ओजस्वी है; मुझे भी ओजस्वी बना| तू दूसरों को भस्म करता है; मुझे भी वह शक्ति दे, साथ ही तू सहनशील भी है; मुझे भी ऐसा सहनशील बना|
यजुर्वेद 19/9

ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और मेहनती हो| जैसे साल भर चलने वाले सोमयुक्त यज्ञ में स्त्रोता मंत्र ध्वनि करते हैं और वैसे ही शब्द मेंढक भी करते हैं|
जो स्वयं ज्ञानवान हो और संसार को ज्ञान देकर भूले-भटके को सही रास्ते पर ले जाता हों उसे ही ब्राह्मण कहते हैं| उन्हें सँसार के सामने आकर लोगों का उपकार करना चाहिए|
ऋग्वेद 7/103/8

हम पुरोहित अपने यजमानों को क्रियाशील, तेजस्वी, परोपकारी और शक्तिवान बनाए रखेंगे, उन्हें कभी भी नीचे नहीं गिरने देंगे।
अथर्ववेद 3/19/4


हमारे शिक्षक, नेता और अधिकारी ब्रम्हचारी (ईश्वर परायण) हों | वे चरित्र भ्रष्ट न हों अन्यथा अनर्थमूलक असामाजिक तत्वों का विकास होगा और राष्ट्र कमज़ोर (पतित) हो जाएगा|
अथर्ववेद 11516

इस सँसार में अध्यापक एवं उपदेशक सदैव अच्छी शिक्षायुक्त वाणी से लोगों को सदाचार की शिक्षा दिया करें जिससे किसी की उदारता नष्ट न होने पावे।
ऋग्वेद 1/139/5