जिस राष्ट्र का हमारे पूर्वजों ने निर्माण किया है और दुष्टों से रक्षा की है, उसके निर्माण के लिए हम अपना त्याग और बलिदान करने को तैयार रहें।
अथर्ववेद 12/1/5
राष्ट्र के निर्माण के लिए हम सब नागरिक कर्मशील और जागरुक हो। आलसी और सुस्त व्यक्ति जिस देश में होते हैं वह देश गुलाम हो जाता है।
अथर्ववेद 12/1/7
ब्राह्मणों को चाहिए कि स्वयं सावधान होकर अपने यजमानों को गलत कामों की ओर जाने से रोके जिससे सब का भला हो और सब की आयु, प्राण, धन, धान्य, कीर्ति, सुख, शांति बढ़े।
अथर्ववेद 19/63/1
जहॉं ज्ञान द्वारा अच्छे कामो को करते रहना जरूरी है वहाँ शस्त्र द्वारा दुष्टों का नाश भी जरूरी है। ज्ञान और कर्म के मिलने से ही पूरी तौर पर आध्यात्मिक जीवन बनता है। ब्राह्मण वर्ण का ज्ञान और क्षत्रिय वर्ण का तेज जहाँ साथ साथ रहेगा वह समाज सदैव फलता फूलता रहेगा।
यजुर्वेद 20/25
जो जागृत हैं और आलस्य प्रमाद से सदैव सावधान रहते हैं उन्हीं को इस संसार में ज्ञान और विज्ञान प्राप्त होता है। उन्हीं को शांति मिलती है। वे ही महापुरुष कहलाते हैं।
ऋग्वेद 5/44/14
आलसी व्यक्ति सदैव दुःख पाते हैं इसलिए हम सबको कर्म प्रधान और उद्योगी बनना चाहिए।
ऋग्वेद 8/12/18
आलस्य और व्यर्थ वार्तालाप से बचने के लिए सदैव काम में लगे रहना चाहिए। हम दुर्गुणों से दूर रहें, श्रेष्ठ संतानों को जन्म दें, और सभी और हमारे ज्ञान की चर्चा हो|
ऋग्वेद 8/48/14
आलस्य को त्यागकर मेहनत करने वाले बनो, मुर्खता त्यागकर वेद ज्ञान प्राप्त करो, मधुर बोलो और आपस में मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करो| इसी से इस दुनियाँ में और स्वर्ग में सुखों की प्राप्ति होगी।
यजुर्वेद 3/47
समुद्र को पानी की कोई इच्छा नहीं होती तो भी उस में अनेक नदियाँ मिलती रहती है| इसी प्रकार मेहनती लोगो की सेवा में लक्ष्मी सदैव खड़ी रहती है, अर्थात जो लोग मेहनत करते हैं, कोशिश करते हैं उन्हें कभी धन की कमी नहीं सताती।
ऋग्वेद 6/19/5
मनुष्य को चाहिए कि वह संघर्ष से घबराये नही और परमात्मा की उपासना करते हुए अपनी आत्मा और शरीर को बलवान और पुष्ट बनावे जिससे संसार में कोई उन्हें परेशान न कर सके।
अथर्ववेद 5/3/1
मनुष्य तू सदैव ऊँचा उठ (प्रगति कर ) यही तेरा धर्म है| जैसे चींटी आदि छोटे-छोटे जीव भी ऊपर चढ़ने में लगे रहते हैं वैसे ही तू भी उन्नति के उपायों को जानकर सदा बढ़ता रहे|
अथर्ववेद 5/30/7