हमारे सैनिक बलशाली हो, दुश्मन को हराने(शत्रु मर्दन) की योग्यता रखते हों और सदैव प्रसन्न रहने वाले हो| उनके हथियार ख़राब ना हो, देश की में वे, अपने फ़ायदे को बलिदान कर देने को तैयार रहें।
अथर्ववेद 4/31/1
भूमि पर पेट पालन करनेवाला किसान होता है अतः समाज में उसको श्रेष्ठ स्थान मिले। पढ़े-लिखे लोग ही अच्छे किसान हो सकते हैं।
ऋग्वेद 10/101/5
सच्चा उपदेशक वही होता है जो जैसा आत्मा में हों वही मन में, जो मन में हो वही वाणी के द्वारा व्यक्त करें। अर्थात जो स्वयं आचरण में लाएं वही उपदेश करें जिससे सभी लोगों में विद्या, बल व धन का उत्कर्ष हो| यही सदुपदेश है|
ऋग्वेद 5/44/6
विद्वान पुरुषों को चाहिए कि वह सत्य और ज्ञान के सदुपदेश से लोगों को ऐसे ही सुखी बनावे जैसे गाय अपने दूध से अपने पालने वाले को सुखी बनाती है।
ऋग्वेद 5/5/2
संसार का सर्वश्रेष्ठ दान ज्ञानदान है क्योंकि चोरी से चुरा नहीं सकते ना ही कोई इसे नष्ट कर सकता है। यह निरंतर बढ़ता रहता है और लाखों को स्थाई सुख देता है।
ऋग्वेद 6/28/3, अथर्ववेद 4/21/3जिस समाज में अधिक से अधिक लोग एक मन, विचार और संकल्प वाले होते हैं वह समाज उन्नतिशील होता है।वहॉं लोग तेजस्वी होते हैं।
ऋग्वेद 10/101/1
हमारा हृदय, मन और संकल्प एक हों -जिससे हमारा संगठन कभी न बिगड़े।
ऋग्वेद 10/191/4
सभी मनुष्यों के विचार समान हों , सब संगठित होकर रहे| सबके मन, चित्र तथा यज्ञ कार्य समान हो अर्थात सब मिलजुल कर रहे|
ऋग्वेद 10/191/3
मैं ब्राह्मण, स्वयं ज्ञान से संपन्न होकर अपने मन को काबू में रखते हुए (मनोनिग्रहपूर्वक) अपने यजमानों को ऊँचा उठाने का प्रयत्न करता रहूँगा। वह बुरे कर्मो की ओर ना बढ़े, किसी के हितों का अपहरण न करें, इसका ध्यान रखूँगा ।
अथर्ववेद 3/19/3
अथर्ववेद 3/19/3
जहाँ ब्रह्म, देवताओं का, वेद विद्या का निरादर होता है वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है वहाँ कोई तेजस्वी तथा वीर नहीं होता।
अथर्ववेद 5 /19/ 4
जिस राष्ट्र में ब्राह्मणों को,विद्वान लोगो को सताया जाता वह वह राज्य ज्ञानहीन होकर नष्ट हो जाते हैं।
अथर्ववेद 5/19/6