Selected Verses of Vedas in Hindi, Know Vedas 61-80

हे परमात्मा मेरे हृदय में भक्ति भाव और कर्मठता का विकास हो| मुझे आरोग्य और पवित्र जीवन प्राप्त हो| मुझे सभी ओर से पवित्र बनाइये।
अथर्ववेद 6/19/2


हे मनुष्यों! तुम्हें अपनी वर्तमान अवस्था में ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। तुम आगे बढ़ो और शरीर तथा आत्मबल के द्वारा पुरुषार्थ प्राप्त करो|
अथर्ववेद 8/1/4


समाज में सम्मान उन्हें मिलता है जो ईश्वर और गुरुजनों की शिक्षा को मानकर कठिनाइयों में भी आगे बढ़ते रहते हैं। उन्हीं की सर्वत्र प्रशंसा होती है।  
अथर्ववेद 8/1/6

इस संसार में उन्नति वे लोग करते हैं ,जो परमात्मा तथा विद्वानों से प्रेम करते हैं, सत्यकर्मी, ज्ञानी और जितेंद्रिय होते हैं। अभी तक ऐसा ही हुआ है और आगे भी ऐसा ही होगा।
अथर्ववेद 12/1/1


मनुष्य जीवन की सफलता इस बात में है कि वह आर्थिक और मानसिक दोषों को त्यागकर निर्मल और पवित्र बने। आत्मा मल विक्षेप आवरण से रहित बने इसके अनेक उपाय वेदों में वर्णित हैं। अतः वे पठनीय है।
सामवेद 1/30/2


मनुष्य अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त करें इसका एक ही उपाय है और वह है सदाचरण।  हम धर्म पर चलते हुए सौ वर्ष तक जीने की कामना करें
यजुर्वेद 40/2
 
समस्त प्रकार के यश के लालच की भावना से हम दूर हों,  क्योंकि इससे हमारी आत्मा पतित होकर दुख पाती है।
ऋग्वेद 1/25/21


आत्म ज्ञान प्राप्त करना मानव जीवन का मूल लक्ष्य है| यह संसार कैसे बना? पदार्थों का आदि कारण क्या है? शरीर और उसमें खून,माँस,हड्डियों की विचित्रता और उसकी आत्मा से उसके अगल होने आदि का ज्ञान मनुष्य को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।


ऋग्वेद 1/64/4


मनुष्य अपने आप को भी नहीं जानता यह कितनी बड़ी भूल है|  उसे भाषा, साहित्य आदि की जो क्षमता प्राप्त है उससे शरीर और जीव आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
ऋग्वेद 1/164/37


दुख का प्रमुख कारण है- मनुष्य का अज्ञान।  इसलिए उसे बड़ी मेहनत से आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इसीसे संपूर्ण कामनाये शांत होती है।
ऋग्वेद 7/ 89/ 4


मन और बुद्धि (अंतः करण) यदि मैला और अपवित्र बना रहे तो परमात्मा की उपासना भी बलवती नहीं होगी।  अतः ईश्वर की उपासना निष्पाप ह्रदय से करें।

ऋग्वेद 8/61/11