परमात्मा की अनेक शक्तियाँ ही अनेक देवताओं के नाम से पुकारी जाती है| पर वह (परमात्मा) एक ही है| इसलिए गुण,कर्म, स्वभाव के अनुसार उस परमात्मा की उपासना करें|
ऋग्वेद 1/ 164/ 46
विद्वान लोग अपने ज्ञान से, चिंतन-मनन से और अनुभव से यह जान लेते हैं कि परमात्मा प्रत्येक पदार्थ में छिपा हुआ है| वही सारी दुनियाँ को सहारा (आश्रय ) देने वाला है उसी से सारी दुनियाँ (सृष्टि)पैदा होती है सभी प्राणी उसी से पैदा होते हैं और आख़िर (प्रलय काल) में उसी मे समा (लीन हो) जाते हैं|
यजुर्वेद 32 /8
हे ईश्वर आप सदैव सबके साथ न्याय करते हैं, दुष्ट और बुरा काम करने वाले लोगों (दुराचारी पुरुषों को) तथा विघ्नकारक तत्वों को आप अपनी शक्ति (प्रज्ज्वलित ज्वालाओं) से नष्ट कर दें और जो धर्मात्मा है आपकी स्तुति करते हैं, उपासना करते हैं, उनको बल व ऐश्वर्य प्रदान करें|
सामवेद 22
परमेश्वर कभी किसी के कर्म को ख़त्म (निष्फल) नहीं करता और ना किसी बेगुनाह (निरपराधी) को दंड देता है| इस जन्म में और अगले-पिछले हर जन्म में हर मनुष्य के लिए कर्म फल की व्यवस्था कर दी गई है|
सामवेद 300
हे मनुष्यों ईश्वर पर आस्था रखो और सदैव यह प्रयत्न करते रहो कि परोपकार के द्वारा सँसार में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पद को प्राप्त करो|
हे मनुष्यों ईश्वर पर आस्था रखो और सदैव यह प्रयत्न करते रहो कि परोपकार के द्वारा सँसार में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पद को प्राप्त करो|
अथर्ववेद 16/19/4
हे परमेश्वर! तू तेज स्वरूप है; मुझे तेज दे| तू अत्यंत वीर (वीर्यवान) है; मुझे पराक्रम दे| तू बलवान है; मुझे बल दे| तू ओजस्वी है; मुझे भी ओजस्वी बना| तू दूसरों को भस्म करता है; मुझे भी वह शक्ति दे, साथ ही तू सहनशील भी है; मुझे भी ऐसा सहनशील बना|
यजुर्वेद 19/9
ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और मेहनती हो| जैसे साल भर चलने वाले सोमयुक्त यज्ञ में स्त्रोता मंत्र ध्वनि करते हैं और वैसे ही शब्द मेंढक भी करते हैं|
जो स्वयं ज्ञानवान हो और संसार को ज्ञान देकर भूले-भटके को सही रास्ते पर ले जाता हों उसे ही ब्राह्मण कहते हैं| उन्हें सँसार के सामने आकर लोगों का उपकार करना चाहिए|
ऋग्वेद 7/103/8
हम पुरोहित अपने यजमानों को क्रियाशील, तेजस्वी, परोपकारी और शक्तिवान बनाए रखेंगे, उन्हें कभी भी नीचे नहीं गिरने देंगे।
अथर्ववेद 3/19/4
हमारे शिक्षक, नेता और अधिकारी ब्रम्हचारी (ईश्वर परायण) हों | वे चरित्र भ्रष्ट न हों अन्यथा अनर्थमूलक असामाजिक तत्वों का विकास होगा और राष्ट्र कमज़ोर (पतित) हो जाएगा|
अथर्ववेद 11516
इस सँसार में अध्यापक एवं उपदेशक सदैव अच्छी शिक्षायुक्त वाणी से लोगों को सदाचार की शिक्षा दिया करें जिससे किसी की उदारता नष्ट न होने पावे।
ऋग्वेद 1/139/5
हे परमेश्वर! तू तेज स्वरूप है; मुझे तेज दे| तू अत्यंत वीर (वीर्यवान) है; मुझे पराक्रम दे| तू बलवान है; मुझे बल दे| तू ओजस्वी है; मुझे भी ओजस्वी बना| तू दूसरों को भस्म करता है; मुझे भी वह शक्ति दे, साथ ही तू सहनशील भी है; मुझे भी ऐसा सहनशील बना|
यजुर्वेद 19/9
ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और मेहनती हो| जैसे साल भर चलने वाले सोमयुक्त यज्ञ में स्त्रोता मंत्र ध्वनि करते हैं और वैसे ही शब्द मेंढक भी करते हैं|
जो स्वयं ज्ञानवान हो और संसार को ज्ञान देकर भूले-भटके को सही रास्ते पर ले जाता हों उसे ही ब्राह्मण कहते हैं| उन्हें सँसार के सामने आकर लोगों का उपकार करना चाहिए|
ऋग्वेद 7/103/8
हम पुरोहित अपने यजमानों को क्रियाशील, तेजस्वी, परोपकारी और शक्तिवान बनाए रखेंगे, उन्हें कभी भी नीचे नहीं गिरने देंगे।
अथर्ववेद 3/19/4
हमारे शिक्षक, नेता और अधिकारी ब्रम्हचारी (ईश्वर परायण) हों | वे चरित्र भ्रष्ट न हों अन्यथा अनर्थमूलक असामाजिक तत्वों का विकास होगा और राष्ट्र कमज़ोर (पतित) हो जाएगा|
अथर्ववेद 11516
इस सँसार में अध्यापक एवं उपदेशक सदैव अच्छी शिक्षायुक्त वाणी से लोगों को सदाचार की शिक्षा दिया करें जिससे किसी की उदारता नष्ट न होने पावे।
ऋग्वेद 1/139/5