प्रभु की समीपता से दिव्य गुणों की प्राप्ति


ज्ञानी, निरोग,निर्मल,मधुर्भाषी,क्रियाशील व्यक्ति प्रभु का स्मरण कर दिव्यगुण पाता है , ज्ञान प्राप्त करने का अभिलाषी ही पिता का सच्चा उपासक होता है, जो निर्मल रहते हुये निरोग रहता है, जो दूसरों की प्रशंसा करते हुये सदा मधुर ही बोलता है तथा सदैव क्रियमान रहता है । प्रभु के समीप रहने से दिव्यगुणों की वृद्धि होती है । इसे यह मन्त्र इस प्रकार स्पष्ट कर रहा है :- 

अग्निःपूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्योनूतनैरुत।
सदेवाँएहवक्षति॥ ऋ01.1.2


विगत मन्त्र में बताया गया था कि तत्वदर्शी लोग ही प्रभु की समीपता पाते हैं । तत्वदृष्टा अपनी रक्षा स्वयं करते हैं । स्वयं को किसी प्रकार के रोग से आक्रान्त नहीं होने देते , रोगों का आक्रमण अपने आप पर नहीं होने देते । इस के साथ ही साथ अपने में जो कमियां हैं , जो न्यूनतायें हैं , उन्हें भी वह दूर करते ही रहते हैं । भाव यह है कि वह स्वयं को पूर्ण करने का यत्न सदा ही करते रहते हैं ।


 वह जो भी शब्द बोलते हैं, वह प्रशंसात्मक ही होते हैं , दूसरे को प्रसन्न करने वाले ही होते है , एसे शब्द कभी नहीं बोलते, जिससे दूसरे को दु:ख हो । यह लोग दूसरों की निन्दा करने से सदा दूर रहते हैं , दूसरों की अच्छायियों का ही वर्णन करते हैं , उनकी कमियों का कभी वर्णन करना नहीं चाहते । यह लोग सदैव गतिशील ही रहते हैं । क्रियमान ही बने रहते हैं । आलस्य , प्रमाद से सदा दूर रहते हैं । इन का जीवन सदा क्रियाशील ही रहता है । 

इस सब का यदि संक्षेप में वर्णन करें तो हम कह सकते हैं कि जो परमपिता परमात्मा का स्तवन करते हैं, उसके उपासक बनकर स्तुति रुप प्रार्थना करते हैं वह सदा :-


( क ) तत्वदृष्टा होते हैं 
( ख ) अपने शरीर में रोगों का प्रवेश नहीं होने देते ।
( ग ) अपने अन्दर जो कमियां है, जो नयूनतायें हैं , जो अभाव हैं , उन्हें दूर करने 
का यत्न करते हैं ।
( घ ) जो कभी कटू, निन्दक,शब्द न बोल कर सदा प्रशंसा में ही शब्द प्रयोग करते
हैं ।
( ड ) जो लोग सदा अपना जीवन गतिमान रखते हैं ,क्रियात्मक रहते हैं ।
एसे लोग ही प्रभु के समीप रहने के बैठने के अधिकारी होते हैं ।


वह प्रभु एसे लोगों से उपासित हो कर , एसे लोगों की समीपता पा कर , इस मानव जीवन में इस प्रकार के लोगों को दिव्य गुण प्राप्त कराने का कार्य करते हैं । भाव यह है कि प्रभु प्राप्ति का सब से मुख्य तथा बडा लाभ यह ही है कि प्रभु की उपासना से, प्रभु के समीप आसन लगाने से, उसकी समीपता पाने से हममें दिव्यगुणों की बडी तेजी से वृद्धि होती है ।


डा. अशोक आर्य 


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