वैचारिक प्रदूषण के कारण और वेद ज्ञान द्वारा निवारण

परमात्मा का जो राष्ट्र(विश्व) है यह अनन्त है। इस अनन्तमयी राष्ट में अपने विचारों को याग(शुभता) में ले जाएं, सुगन्धि में ले जाएं जिससे प्रदूषण समाप्त हो जाए।  क्योंकि वर्तमान के काल में इतना प्रदूषण आ गया है की अब से कुछ समय के पश्चात् मानो देखो श्वांस लेने में भी मानव अपने में देखो दुखित होता रहेगा और श्वांस लेते ही मृत्यु भी हो सकती है। ऐसा प्रदूषण इस संसार में फैल गया है और प्रदूषण के दो कारण हैं। उनके कारणों में अशुद्ध वाक् उच्चारण करना और उनके रहन सहन की, खान-पान की पद्धतियाँ भ्रष्ट होने से मानो प्रदूषण का जन्म होता है ।

हमारा विचार, हमारा अन्नाद भूतम् पवित्र ,होना चाहिए। हम दूसरे के रक्त को जब हम पान करने में और सुरा में लगे रहते हैं तो उससे प्रदूषण का जन्म होता रहता है, यह प्रदूषण नहीं होना चाहिए। हमारा आहार और व्यवहार, हमारा जीवन पवित्रता में, पवित्रता की आभा में रत हो जाए।

राष्ट्र और राजा के लिए संदेश

एक मुझे यह वाक् उच्चारण करना है कि यह जो नाना प्रकार के ईश्वर के नाम पर नाना प्रकार की रूढ़ियाँ बनी हुई है।कोई मोहम्मद के मानने वाला है, कोई ईसा को  मानने वाला है, कोई नानक के मानने वाला है परन्तु देखो एक-दूसरे के विचारों में रक्त भरी क्रान्ति का संचार आ रहा है।

तो वह जो विचार है वह दूषित वायुमण्डल को जन्म देते हैं इसीलिए विचारवान राजा का कर्तव्य  है - दार्शनिक बनकर के राजा अपने राष्ट्र में दार्शनिकता का प्रसार करे जिससे मानव की वाणी पवित्र हो जाए, मानव का रहन, विचार पवित्र हो जाए। आहार पवित्र हो जाए और यह रूढ़िवाद विचारों का समाप्त हो जाए।
एकोकी धर्मम् ब्रह्मा यह मानव की इन्द्रियों में जो धर्म है उसको विचार करके मानव को ग्रहण करना चाहिए और राजा अपने राष्ट्र को ऊँचा बनाए, यही राजा का कर्तव्य है। पुरातन काल में जब राष्ट्र का निर्माण हुआ तो
भगवान् मनु ने सबसे प्रथम राष्ट्र का निर्माण करते उन्होंने कहा है-

क्या राजा को चाहिए कि धर्म को मानवीय जीवन पद्धति में लाने का प्रयास करे, इसीलिए राष्ट्र का जन्म होता है। राष्ट्र का जन्म इसलिए नहीं होता कि धर्म की अवहेलना की जाए और धर्म कहते किसे हैं- जो मानव की इन्द्रियों में समाहित रहता है। इन्द्रियों का दृष्टिपात करना ही वही धर्म है। और नाना प्रकार की रूढ़ियाँ नहीं रहनी चाहिए। यह रूढ़ियाँ राष्ट्र के लिए घातक हैं, मानो समाज के लिए घातक हैं और यही मानो देखो प्रदूषण को जन्म देती रहती हैं। हे यजमान (मानव) ! तेरे जीवन का सौभाग्य अखण्ड बना रहे और तेरी मानवीयता अपने में पवित्रता को धारण करती रहे।


- महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार ।


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