गार्हपत्य अग्नि और भगवान् कृष्ण का बाल्यकाल| story of Shri Krishna


सबसे प्रथम अग्नि सबसे प्रथम अग्नि गार्हपत्य नाम की अग्नि है। उस गार्हपत्य नाम की अग्नि में कौन तपता है, ब्रह्मचारी तपता है। जब प्रातः कालीन वह अपने में मनन  करने लगता है, प्रातःकालीन गृह को त्याग देता है।


भगवान् कृष्ण का जीवन।


एक समय प्रातःकालीन संदीपन ऋषि के आश्रम में बेटा ! नैतिकता के लिए जब ऋषि ने सब ब्रह्मचारी को उपस्थित किया तो श्रीकृष्ण जो वहाँ विद्यार्थी थे उन्होंने यह प्रश्न किया कि- हे महाराज, हे आचार्यजन, हे पूज्यपाद आप नित्य प्रति नैतिक शिक्षा में हमें ले जाते हैं। हम सदैव यह जानना चाहते रहते हैं हे प्रभु! प्राचीदिग किसे कहते हैं?


उन्होंने (महर्षि संदीपन ने ) कहा प्राचीदिग कहते हैं कि परमात्मा का जो स्वरूप है, वह प्रकाश में रहता है। जैसे दो पक्ष हैं एक माह में एक उत्तरायण है तो एक दक्षिणायन कहलाता है। मानो उत्तरायण में प्रकाश है और दक्षिणायन में देखो अन्धकार माना गया है। तो इसी प्रकार दोनों की सत्ता में रत रहने वाले का नामकरण ही अपने में अवृत कहलाता है। तो इसके ऊपर तुम्हारा विचार होना चाहिए।


भगवान् कृष्ण बोले हे प्रभु! चलो यह भी वाक् मैंने जान लिया है। परन्तु मैं ये जानना चाहता हूँ, कि यह प्राचीदिग क्या है?


उन्होंने कहा यह प्राचीदिग मानो देखो अग्नि की दिशा है, और अग्नि काष्ठों में नहीं मानो जो द्यु में प्रकाश देती है और द्यु से मानव के मन मस्तिष्क में रत होती है और वही अग्नि प्रकाश में रत् हो करके दिशाओं को जानने वाला  बनता है। वही दिशाओं को जैसे प्राचीदिग है, वह एक दिशा भी है, अग्नि भी है, वह अग्रणीय बना करके मानव को प्रकाश देती है जिससे मानव को एक मार्ग
प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि इसका नाम ही प्राचीदिग
कहा जाता है।


जब पुनः आचार्य से ब्रह्मचारी ने कहा कि प्रभु यह प्राचीदिग क्या है?


उन्होंने कहा प्राचीदिग ज्ञान का कुंज कहलाता है। ब्रह्मचारी जब प्रातःकालीन अध्ययन करता है वह पूर्व मुख हो करके ही, पूर्व मुख बन करके जब वह अध्ययन करता है तो उसकी स्मरण शक्ति में जागरूकता आ जाती है और स्मरण शक्ति बलवती होती है। इसलिए प्राचीदिग को, दिशा को ले करके जब वह अध्ययन करता है और दिशा का देखो अपने में समन्वय करता रहता है। तो वह ज्ञान के कुंज में प्रवेश हो जाता है। तो इसीलिए उसका
नाम प्राचीदिग कहा जाता है।  

- महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार ।


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