Connection between Sunrays and Cow. सूर्य की विशिष्ट किरणों और गौ का उनके साथ सम्बन्ध

सूर्य की विशिष्ट किरणों और गौ का उनके साथ सम्बन्ध


हमारे आचार्यों ने गौ नाम के पशु (गाय) की बड़ी प्रशंसा की है वास्तव में प्रत्येक प्राणी की प्रशंसा वैदिक साहित्य में आती रहती है परन्तु देखो विशेष कर हमारे यहा गौ नाम के पशु की बड़ी विशेषता आती रहती है, क्योंकि जैसे प्रत्येक धातुओं का निर्माण वसुन्धरा के गर्भ में होता है, परन्तु एक स्वर्ण धातु का निर्माण होता है। स्वर्ण अपने स्थान पर अद्वितीय धातु मानी जाती है।   


हमारे देश में भिन्न-भिन्न प्रकार के पशु हैं परन्तु गौ नाम के पशु की महान प्रशंसा की है।  उनकी प्रशंसा क्यों की है ?


ऋषि मुनि एक समय अध्ययन करने के लिये तत्पर हो गये क्रियात्मक पशुओं के जीवन में विचारने लगे कि प्रत्येक पशु में कौन-सा विशेष गुण है? और उनके जैव सृष्टि के साथ के संबंधो का अध्ययन करने लगे। इस क्रम में उन्होंने जाना की सूर्य की किरणें ‘‘अस्वानं वन्दे देवोः ब्रम्हा:” सूर्य की किरणों और उनके प्रभावों का अध्ययन करने लगे। अध्ययन के इस क्रम में उन्होंने पाया की  सूर्य की एक वैष्णव नाम की किरण कहलाती है, एक ‘इन्द्रगोतिक’ नाम की किरण कहलाती है, ये भिन्न-भिन्न प्रकार की किरणों का समावेश पृथ्वी पर आता रहता है। सूर्य की किरणों में एक स्वर्ण नाम की विशेष किरण होती है जो स्वर्ण के परमाणुओं को आदान-प्रदान करती रहती है।  सूर्य की एक किरण उर्ध्वगति करती है जिसका नाम सुमेरकेतु है जो कि परमाणुओं में गति का संचार करती है।

उसके सूक्ष्मतम रहस्य को यदि और जानना हैं तो एक अणु के मध्य में देखो उसके अन्तर्गत अरबों-खरबों परमाणु गति करते रहते हैं। जैसे एक ब्रम्हाण्ड के अन्तर्गत नाना पृथ्विया गति करती रहती हैं। इसी प्रकार ‘‘प्रमाणम् ब्रम्ही वृत्ता: ’’ नाम की एक किरण होती है उस किरण का समावेश गौ नाम के पशु पर होता है। जैसे पृथ्वी के गर्भ में वह किरण जाती है, स्वर्ण की धातु का निर्माण करती है,इसी प्रकार जब वही किरण गौ नाम के पशु के रीढ़ के विभाग में जाती है तो गौ के रीढ़ के विभाग में एक स्वर्णकेतु नाम की नाड़ी होती है उस नाड़ी का सम्बन्ध जैसे सूर्य उदय हुआ उसका उर्ध्वमुख हो जाता है।  


सूर्य की किरण को वह नाड़ी अपने में सिंचन करने लगती है अपने में धारण करने लगती है और जब वो धारण करती है तो परमाणु उस गौ नाम के शरीर में प्रवेश करते है।  
उसमें जब उन परमाणुओं का मन्थन होता है वे दुग्ध देते हैं तो उसके दुग्ध में पीत वर्ण होता है, पीत वर्ण का अभिप्राय ये है कि उसमें स्वर्ण की मात्रा विशेष होती है।  


इसी कारण आयुर्वेद आचार्यों ने इस गौ नाम के पशु की बहुत प्रशंसा की है।


हमारे यहाँ परम्परा से ही राजाओं के यहाँ जब कोई ब्रम्हवेत्ता उपदेश देता था तो राजा द्वारा उसे कामधेनु नाम उच्चारण करके उपदेश देने  वाले को गौ-दान दिया जाता था। कि इसके दुग्ध को पान करने से तुम्हारी बुद्धि में महानता आ जायेगी। इस प्रकार का क्रियाकलाप परम्परा से रहा है।


और अब तो कुछ हो समय बाकि है जब संसार का वैज्ञानिक भी यज्ञ कर्म को अपनाने वाला है मुझे अभी-अभी यह प्रतीत हुआ है कि कुछ समय हुआ कि समुद्रों के तट पर वैज्ञानिकों की एक सभा एकत्रित हुई है उन वैज्ञानिकों की सभा में निर्णय हुआ है कि वायु का दूषण हो रहा है यह जो वायुमण्डल दूषित हो रहा है परन्तु इसका यह कछु समय तक चलता रहा तो यह प्राणी श्वास की गति के साथ ही नष्ट हो सकता है।
परन्तु देखो, अब उन वैज्ञानिकों का यह विचार है कि यह जो गौ नामक जो पशु है यह गौ नाम के पशु से उसके घृत में, दुग्ध में इस प्रकार के परमाणु हैं जो अग्नि में परिणत करने से ऐसे परमाणुओं का प्रादुर्भाव हो रहा है यह परमाणु समूह अशुद्ध परमाणुओं को निगलता हुआ शुद्ध वायुमण्डल को उत्पन्न कर सकता है। शुद्धता की प्रसारणता और अशुद्धता को नष्ट करना इन परमाणुओं का कर्तव्य है, यह भी गौ घृत की ही शक्ति का माहात्म्य है।


  • महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार