Divine Contributions of Vedic Rishi. ऋषियों के दिव्य कर्तुत्व

ऋषियों के दिव्य कर्तुत्व  

महर्षि वैशम्पायन आदि ऋषिवर अपने अपने विचार ब्रम्ह  के सम्बन्ध में, ज्ञान और विज्ञान के सम्बन्ध में, उनकी उड़ानें उड़ती रहती थी।  क्योंकि हमारे यहाँ परमपिता परमात्मा “विज्ञानस्वरुप” भी हैं  वही  “यज्ञस्वरूप” भी माना गया है।  क्योंकि जितना भी संसार का शुभ कर्म, आत्मीय कर्म है, वह सब यज्ञ कहलाता है।  जितने भी महान कर्म हैं, आत्मा से सम्बन्धित हैं, जिनसे हृदय प्रसन्न होता है, अंतःहृदय में संस्कार उर्ध्वगति करते हैं, उन समस्त का एक नाम यज्ञ कहलाता है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने बेटा! इसपर अध्ययन करते-करते मानो अग्नि के ऊपर दहन, उसका चयन करते-करते अन्तरिक्ष में पहुँचे उन्होंने नाना प्रकार के लोक-लोकान्तरों की गणनाए की हैं। नाना प्रकार की निहारिकाओं में पहुँच  गये हैं, एक-एक निहारिका के सूर्यों की गणना करने लगे हैं तो उसमें बेटा! अनन्त हो करके वे मौन हो गये हैं।अनन्तमयी दृष्टिपात होने वाला जो ये अमूल्य जगत् है इसको जानकर मानव मौन हो जाता है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार