Dialogue between Rekva Muni and Sages .गाड़ीवान रैक्व मुनि और अन्य ऋषिवरों में विज्ञान चर्चा

  • गाड़ीवान रैक्व मुनि और अन्य ऋषिवरों में विज्ञान चर्चा
एक बार महर्षि उद्दालक गोत्रीय ऋषि के आश्रम में कुछ अतिथि पधारे। उन्होंने सेवा की और अतिथियों का स्वागत किया और याग कर्म करने के पश्चात् ऋषि मुनियों ने वहाँ से गमन किया और भ्रमण करते हुए वे गाडीवान रैक्व मुनि के आश्रम में पहुँचे। रैक्व मुनि ने ऋषि मुनियों का बड़ा स्वागत किया, उनको आसन दिये। उनमें कुछ ब्रह्मचारी थे, कुछ ब्रह्मश्रोत्रीय ब्रह्मचारी थे, कुछ ब्रम्हवेत्ता थे तो इस प्रकार के उनके भिन्न-भिन्न आसन विद्यमान हो गये।
गाडीवान रैक्व मुनि महाराज विज्ञान पर,अग्नि पर अपना अध्ययन करते रहते थे। द्यौ से सूर्य कैसे प्रकाश ले करके अपनी ऊर्जा पृथ्वी को प्रदान कर देता है।  प्राणी मात्र को अपनी ऊर्जा देकर वो शक्तिशाली बनाता रहता है।  नाना प्रकार की रश्मियाँ वनस्पतियों को प्रदान करता हुआ उनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के गुणों का आदान-प्रदान करता  है इस प्रकार का अध्ययन ऋषि-मुनियों के मध्य में प्रारम्भ हो रहा है। रैक्व मुनि महाराज ने ऋषि-मुनियों से कहा कि तुम्हें कोई शंका हो तो उसका समाधान किया जा सकता है।  

इसके बाद ऋषि मुनियों ने अपना-अपना मन्तव्य देना प्रारम्भ किया।उन्होंने कहा “प्रभु! ये जो शब्द विज्ञान अथवा ये जो प्रकाश विज्ञान है हम इसको जानना चाहते हैं, क्योंकि हमारे यहाँ दो प्रकार के विज्ञान की प्रतिभा हमारे हृदयों में प्रवेश होती रही है, हम दोनों प्रकार के विज्ञान में जाना चाहते हैं, एक भौतिक विज्ञान है और एक आध्यात्मिक विज्ञान कहलाता है।  परन्तु दोनों प्रकार के विज्ञान में क्या-क्या सूक्ष्मतम है?”

तब महर्षि रैक्व मुनि ने अपने अनुभव के आधार पर ये कहा कि मेरे विचार में यह आता है कि  जहाँ यह भौतिक विज्ञान, परमाणु विज्ञान का समापन होता है वहाँ से आध्यात्मिकवाद का प्रारम्भ होता है।”

ऋषियों ने कहा कि प्रभु! उसका हमें निर्णय कराइये। हम इसका साक्षात्कार करे  या केवल आपके वाक्यों पर विश्वास कर लिया जाये।

गाडीवान रैक्व मुनि महाराज ने कहा-कि नहीं, इसके ऊपर भी विचार होना चाहिये। ये कैसे सिद्ध हो कि आध्यात्मिक विज्ञानवेत्ता क्या चाहता है ? भौतिक विज्ञानवेत्ता क्या चाहता है ?

तो गाडीवान रैक्व ने कहा कि भौतिक विज्ञान तो ये चाहता है कि मैं अणुओं और परमाणुओं को जान कर, अग्नि विद्या और नाना प्रकार की विद्याओं को जान करके उस परमाणुवाद को मैं एकत्रित करके भौतिक विज्ञान में दृष्टिगत होने वाला ये अनुपम जगत् है ये सूक्ष्मता में भी और स्थूलता में भी दोनों में सिद्ध हो जाता है।

और हम अपने राष्ट्र की पद्धति को जो द्रव्य पद्धति कहलाती है, उस  द्रव्यपद्धति को जान कर इसका सदुपयोग कर सकते हैं। परन्तु यह तो भौतिक विज्ञान कहलाता है और आध्यात्मिक विज्ञानवेत्ता  यह सोचता है कि संसार में प्रत्येक मानव मृत्यु को नहीं प्राप्त करना चाहता । प्रत्येक प्राणी के में ये ह्रदय में यह आशा लगी रहती है कि मेरी मृत्यु नहीं होनी चाहिये। मैं मृत्युंजय बनना चाहता हूँ। मैं मृत्यु से पार होना चाहता हूँ।

तो वह मृत्यु से कैसे पार हो? मृत्यु को कैसे जाने?

जिसके संस्कार अन्धकारमय हों, प्राणी मात्र के ह्रदय में अन्धकार हैं।राष्ट्र की पद्धति भी जो अन्धकार है वो अन्धकार भी न रहे प्रत्येक मानव प्रकाश में कर्म करने वाले हों और मृत्युंजय बन जाय। तो आध्यात्मिक विज्ञानवेत्ता मृत्यु से पार होना चाहता है।

यह दो प्रकार का विज्ञान हमारे यहा परम्परा से ही माना गया है। परन्तु उन्होंने कहा यदि आध्यात्मवाद में प्रवेश करना चाहते हैं तो भौतिक विज्ञान के मार्ग से होकर ही हम आध्यात्मवाद में प्रवेश कर सकते हैं। और यदि हमने भौतिकवाद को नहीं जाना है, भौतिक विज्ञान को नहीं समझा है, तरंगवाद को नहीं जाना है, उसको क्रियात्मक नहीं बनाया है तो हम मृत्यु को विजय नहीं कर सकते।

ये विचार महर्षि गाड़ीवान रैक्व मुनि महाराज का रहा। इसमें महर्षि प्रहण इत्यादि ऋषियों ने उनसे ये प्रश्न किया कि महाराज हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि हमारे ये जो नेत्र हैं इसका ज्योतिर्मयलिंग कौन है ? इसको कौन ज्योति देने वाला है ?

तो ऋषि ने कहा कि इनको प्रकाश देने वाला यह सूर्य है। प्रातःकाल में उदय होता है, प्रकाश देता रहता है, प्रकाश का द्योतक बना हुआ है, ऊर्जा को लेकर आता है, वनस्पतियों को तपाता रहता है नाना प्रकार की विद्याओं को जानने वाले इसके प्रकाश में विद्या का अध्ययन करते रहते हैं। कोई मानव आयु के वेद को जानना चाहता है तो वो नाना प्रकार की वनस्पतियों के अनुसन्धान और उसके प्रभाव में रत हो जाता है उससे जीवन शक्ति को अपने में ग्रहण करने लगता है परन्तु वही वनस्पति विज्ञान में रत हो करके उनका पिपाद बना करके अपने जीवन का सन्धिकाल बनाने लगता है फिर वह अपने को जानने के लिये, वह उस  ब्रम्हरूप महान ज्योति को जानने के लिये भी तत्पर हो जाता है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार