Veda secreats for Happy Family, पारिवारिक सुख के लिए वेद 


ऋग्वेद का अंतिम सूक्त संगठन सूक्त के रूपा में जाना गया है | इस सूक्त का एक मन्त्र है :


संगच्छध्वंसंवदध्वंसंवोमनांसिजानताम्।
देवाभागंयथापूर्वेसंजानानाउपासते॥ ऋ010.191.2


इस मन्त्र में परिवार का दृश्य स्पष्ट किया गया है | परिवार के सुख उपदेश करते हुए कह रहा है संगच्छध्वं अर्थात हम साथ साथ चले | जिस परिवार के सब सदस्य एक साथ चलें ,वह उन्नति कि और सदा अग्रसर रहता है किन्तु तब जब संवदध्वं अर्थात न केवल साथ साथ ही चलते हों बल्कि एक जैसा या एक स्वर से बोलते भी हों | मन्त्र आगे उपदेश करता है कि साथ चलने और एक जैसा ओलाने के अतिरिक्त परिवार के सुख के लिए मन्त्र बताता है कि संवोमनांसिजानताम् अर्थात सब के मन भी एक जैसे हों | सब एक जैसा बोलते हों, एक जैसा सोचते हों , एक जैसा विचार करते हों |


जिस परिवार में इस प्रकार के विचार होंगे , सब एक दुसरे का आदर सत्कार करेंगे , वहां निश्चय ही सब प्रकार के सुख होंगे अन्यथा परिवार में सुख आ ही नहीं सकता | सदा लड़ाई झगडा कलह क्लेश का वाता वरण बना रहेगा | इस अवस्था में परिवार के सब सदस्यों पर अनेक प्रकार के रोगों के आक्रमण होंगे | इस सब से बचने के लिए इस मन्त्र पर आचरण करें | अपने अहं को भुला करके बलिदान कि भावना से प्रत्येक सदस्य का आदर सत्कार करोगे तो परिवार में सब सुखों के साथ ही साथ सब प्रकार के धन ऐश्वर्यों की वर्षा होगी, परिवार को स्वर्गिक आनंद मिलेगा तथा परिवार का यश व कीर्ति दूर दूर तक जावेगी |

- अशोक आर्य