The Vedic Election System for King, Vedic Hindi Article

वैदिक काल में कैसे होता था राजा का निर्वाचन

हमारे यहा राष्ट्र की जो प्रणाली है, राष्ट्र की जो निर्वाचन शैली है वह बड़ी विचित्र रही है। बुद्धिमान एकत्रित होते और राजा का निर्वाचन होता था। राजा की प्रतिभा को, राजा के क्रिया-कलाप को ऋषि सर्वेक्षण करते थे।

यहाँ राजा का निर्वाचन बुद्धिमानों के द्वारा होता है कि इसको राजा बनाना है। यह राजा किस समय अपने आसन को त्यागता है अर्थात दिन के किस समय उठता है , आसन को त्याग करके वह कैसे  क्रियाकलाप करता है, उसका आहार कैसा है, उसका व्यवहार कैसा  है ऐसी उसकी परीक्षा के समय बुद्धिमानों का समूह, राजा का निर्वाचन करता।  

राजा के निर्वाचन की महत्वपूर्ण योग्यताएँ क्या थी

उस राजा का निर्वाचन जो हिंसक नहीं है। वह जो अहिंसा में है, जो इन्द्रियों का संयम करने वाला है, ब्रह्मवर्चस का पालन करने वाला है, दूसरों की कन्या को कु-दृष्टिपात तो नहीं करता है, प्रजा के वैभव को अपना शृंगार तो नहीं बना रहा है, यह प्राण को अपने वश में करने वाला है या नहीं, यह प्राणायाम भी करता है अथवा नहीं, मानो मूलाधार की प्रतिभा में रत होकर के उसका निर्वाचन होता है।

जब निर्वाचित हुआ राजा का वह अहिंसामयी विधि से अपने राष्ट्र का निर्माण करता है, वह राजा कितना श्रेष्ठ  होता है।

और अब जो राजा( नेता ) यहाँ निर्वाचित हुआ है वह कौन ? जिसको यह प्रतीत नहीं है कि तू (स्वयं) संसार में क्यों है, परन्तु वह भी राजा  का निर्वाचन कर रहा है। जिसे स्वयं अपने जीवन का ज्ञान नहीं है, वह भी अपने को राष्ट्रिय कह रहा है। जिसे ज्ञान नहीं आध्यात्मिकता का, भौतिकवाद का, व्यवहार का, वह निर्वाचन कर रहा है!

मूर्खों का निर्वाचन किया हुआ राजा प्रायः मूर्ख कहा जाता है, वह भयभीत होता रहेगा, उसे मृत्यु से भय होगा।  राजा वह होता है जिसे मृत्यु का भय नहीं होता, राजा वह होता है जो प्रजा को ब्रह्मज्ञान दे सके, राजा वह होता है जो मीन से, सिंह से लेकर मानव की रक्षा करने वाला हो ।

जब महाराजा अश्वपति बारह वर्षों तक गायों की सेवा करते रहे, प्रत्येक प्राणी की सेवा करते रहे उस समय किसी सिंह ने उस पर आक्रमण कर दिया तो महाराज अश्वपति उस सिंह को ललकार कर रहे हैं कि हे सिंहराज! तू यहाँ क्या कर रहा है ? तू मेरे राष्ट्र के लाभप्रद पशुओं का आहार कर रहा है? सिंहराज ने राजा की प्रेरणा और उसकी आन्तरिक तरंगों को स्वीकार करके गऊ को त्याग दिया।

परन्तु आधुनिक काल का राजा अपने लिए नहीं कह सकता कि तू ऐसा  भक्षण क्यों कर रहा है क्योंकि उसे ज्ञान नहीं है, इतना विवेक और तप नहीं है। जब तप ही नहीं है तो राष्ट का ऐसा निर्वाचन नहीं होना चाहिए।

आधुनिक समय

राष्ट्रिय विचारों का जो संसार में प्रायः वर्तमान में हो रहा है, मैं प्रकट करता रहता हूँ आज का प्रत्येक राजा पृथ्वी पर दुःखी  हो रहा है। उसके दुःखी होने का कारण केवल यह कि उसे ज्ञान नहीं है। उसकी निर्वाचन प्रणाली मानो, भ्रष्ट  हो गयी है और जब निर्वाचन प्रणाली आहार और व्यवहार दोनों भ्रष्ट हैं तो चिन्ता कौन कर पाएगा, राजा ही तो करेगा। लेकिन वह खुद ही त्यागी नहीं है  और बिना त्याग के मानव का जीवन कदापि भी ऊंचा नहीं बना करता है। उसमें शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती।

यज्ञ के तत्वदर्शन का तिरस्कार इतना हुआ कि आज राजा और प्रजा दोनों वाममार्गी बने हुए हैं। समाज का निर्वाचन पवित्र होना चाहिए। आज अनाधिकार-चेष्टा हो रही है। केवल राष्ट्रीयता में, अनुशासन में और विद्यालयों में अनाधिकार चेष्टा हो रही है। इसीलिए यह संसार अपने में एक रक्तभरी क्रान्ति का अवसर बनता जा रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत होता है।
आज सब और अधिकार की ही पुकार है और कर्तव्य का पालन कही नहीं है। यही राष्ट्र और समाज को अग्नि के मुखारबिन्दु में ले जा रहा है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी महाराज के प्रवचनों से साभार