This earth sings a song of universe. यह पृथ्वी वास्तव में समस्त ब्रम्हाण्डो की गाथा ही तो गा रही है।

यह पृथ्वी वास्तव में समस्त ब्रम्हाण्डो की गाथा ही तो गा रही है।


जिस प्रकार ये माता का पुत्र माता की गाथा गा रहा है।  मानो जैसे ये पृथ्वी ब्रम्हाण्ड  की गाथा बन करके अथवा गाथामयी स्वरूप बन करके इसकी गाथा का वर्णन कर रही है। इसी प्रकार प्रत्येक वेद-मन्त्र उस परमपिता परमात्मा की गाथा गा रहा है। मानों जैसे यह पृथ्वी है, इस पृथ्वी के गर्भ स्थल में जो नाना प्रकार का खाद्य और खनिज पदार्थों की उत्पत्ति होती रहती है।

इसका निर्माण होता रहता है। वह ब्रम्हाण्ड की गाथा गाती है।क्योंकि यह जो ब्रम्हाण्ड है, यह नाना प्रकार के लोक-लोकान्तरों वाला है। यह लोक-लोकान्तरों वाला जो ब्रम्हाण्ड है; इसमें प्रत्येक मण्डल का समन्वय रहता है, इस पृथ्वी मण्डल के तत्वों से, कहीं सुगन्ध की धातु का निर्माण हो रहा है, कहीं रत्नों की धातु का निर्माण हो रहा है, कहीं जल को शक्तिशाली बनाया जा रहा है।

ये नाना प्रकार के व्यंजनों को जन्म देने वाली है। नाना रसों का स्वादन इसी के गर्भ स्थल में वशीभूत हो रहा है। नाना सूर्य की किरणें आती रहती हैं। देखो, द्यौ मण्डल से प्रकाश आता रहता है।सूर्य उसका माध्यम बना हुआ है। इस पृथ्वी को तेजोमयी बना रहा है। मानो एक मण्डल का सम्बन्ध नहीं रहता, नाना ध्रुव मण्डल इत्यादियों का भी समन्वय होता रहता। मंगल और चन्द्र इत्यादियों का समन्वय होने से मेरे प्यारे ये जो पृथ्वी है, ये पृथा कहलाती है।

कहीं अरून्धति मण्डल है, कहीं मेरे प्यारे! देखो, वशिष्ठ मण्डल है।इन नाना प्रकार के मण्डलों के समन्वय में सब की पृथ्वी गाथा गा रही है। ये जो ब्रम्हाण्ड है इसकी गाथा कौन गा रही है ? पृथ्वी गाती चली आ रही है। गान के रूप में गा रही है। पांचो प्रकार का रसोस्वादन इसे प्राप्त होता रहता है।परन्तु यह जो रसों का स्वादन है वह प्रत्येक लोक-लोकान्तरों की आभा में रमण कर रहा है।

चाहे वह चन्द्रमा का प्राणी हो, चाहे वह मंगल मण्डल का प्राणी क्यों न हो, चाहे वह बृहस्पति मण्डल का हो वस्तुतः वह जो पांचो प्रकार का रस है, वह  इस पृथ्वी में है तो कोई और मण्डलों में विद्यमान हैं परन्तु देखो वह ब्रम्हा की गाथा गा रही है। इस ब्रम्हाण्ड  की गाथा गा रही है। कौन गा रही है ? पृथ्वी गा रही है।

मेरे पुत्रो! देखो, जल गति कर रहा है।सूर्य की किरणें उसे तपा रही है। तपा करके वही जल शक्तिशाली बन करके वाहनों में मानों क्रियाकलाप कर रहा है। मेरे पुत्रो! देखो, यह ब्रम्ह की गाथा गा रही है। ब्रम्हाण्ड की गाथा गाने वाली कौन है ? यह पृथ्वी है, बेटा! इसे वेद ने ‘पृथा’ कहा है। पृथ्वी कहा है, रेणु कहा है, रेणुका कहा है, इसको अहिल्या कहा है, इसको गौ कहा है, इसको मेघ कहा है, इसको अजा कहा है, भिन्न-भिन्न प्रकार के रूपों में बेटा! वैदिक साहित्य इसका वर्णन कर रहा है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार