Real meaning of Dharma - धर्म का स्वरूप

धर्म का स्वरूप

मैं आधुनिककाल के राजाओं,शासकों को ये कहता हूँ  कि तू धार्मिक बन,तू धर्म को लेकर चल और धर्म कहते किसे हैं? कर्तव्यवाद को।  और कर्तव्यवाद का नाम ही धर्म है जैसे नेत्र दृष्टिपात करते है, ये उनका कर्तव्य है परन्तु अगर उसमें कुदृष्टि आ जाती है तो ये पाप के गोलक बन जाते है इसी प्रकार आज का वैज्ञानिक प्रकृति के सूक्ष्म से प्रकोप जब आते है तो प्रजा को भय की प्रीति दे रहा है और ये कहता है ये सब समाप्त हो जाएगा। अरे भोले वैज्ञानिक आज तू इतना भोला क्यों बन गया है? इतनी अज्ञानता में क्यों प्रवेश कर गया है? ये प्रकृति के प्रकोप तो स्वाभाविक रूप से आते रहते है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि समय-समय पर देखो अग्नि-जो समुद्रों में प्रदीप्त हो जाती है और वो अन्तरिक्ष में प्रवेश करती है उससे जलों का आरोपण होता रहता है।  इसमें तुम वैज्ञानिक शान्ति पूर्वक अपने विज्ञान के ऊपर, अपने परमाणुवाद पर विचार विनिमय करते चले जाओ। परन्तु देखो, तुम प्रजा को भयभीत करना बंद करो। आज ये भयभीत क्यों है क्योंकि राजा प्रजा से वैभव को संग्रह कर रहा है इसका एक ही मूल कारण है और कोई कारण नहीं है। वह जितने भी अप्रिय कर्म है उन कर्मों को वह व्यवसाय बना रहा है, व्यवसाय बना करके अपने कार्यों की पूर्ति करना चाहता है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार