Meaning of Vishnu in context to a King.महर्षि वशिष्ठ ने श्री राम को समझाया विष्णु रूप का राष्ट्रिय तत्वदर्शन

महर्षि वशिष्ठ ने श्री राम को समझाया विष्णु रूप का राष्ट्रिय तत्वदर्शन

एक बार वन गमन से पूर्व श्री राम ने महर्षि वशिष्ठ से निवेदन किया की है प्रभु मेरा राष्ट्र रावण जैसे राक्षसों से पीड़ित है इसकी सुरक्षा और राष्ट्र की उन्नति का उपाय कहे।

महर्षि बोले - राम, अगर तुम अपने राष्ट्र को राम राज्य बनाना चाहते हो तो पहले विष्णु बनों और विष्णुराष्ट्र स्थापना का प्रयत्न करो। श्री राम बोले - प्रभु , विष्णु बनने का अर्थ और विष्णु राष्ट्र का क्या अभिप्राय है।

श्री राम की जिज्ञासा जानकर -तत्वदर्शी ऋषिवर वशिष्ठ जी बोले-
विष्णु कहते ही उसे हैं जिस राजा के राष्ट्र मे विज्ञान पराकाष्ठा पर हो, जहाँ वैज्ञानिक पुरुष हो और वे वैज्ञानिक पुरुष अनुसन्धान करने वाले हो।

हे राम, विष्णु का वहां गरुड़ है , इसका वैदिक अर्थ सुनो -
हे राम,  गरुड़ इत्यादि के रूप मे प्रायः वैज्ञानिको का वर्णन आता रहता है। (1) गरुड़ नाम का पक्षी भी होता है, (2) परन्तु गरुड़ यहाँ वैदिक परम्परा मे मन को कहा गया है। (3) गरुड़ अनुसन्धान करने वाल वैज्ञानिको को कहा जाता है। उस विज्ञान पर विराजमान होकर जो लोक-लोकान्तरो की उड़ान उड़ने वाला राजा हो उन्हे विष्णु कहा जाता है।

विष्णु के दो गणों के अर्थ :

सनातन सत्य की प्रज्ञा से ओतप्रोत महर्षि वशिष्ठ प्रभु राम से आगे बोले।

विष्णु के जय-विजय दो गण हैं। जब हम राष्ट्रीय बनकर दूसरे राष्ट्रो को विजय करना चाहते हैं तो उस समय हम जय और विजय दोनो को अपने समीप रखते हैं। राजा जब दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण करता हुआ जय विजय की घोषणा करता है, वह विष्णु बन जाता है।

ऐसा राजा विष्णु बन करके रुद्र रूप (न्यायकारी और दुष्टों को दण्डित करने वाला रूप)  धारण करके अपने राष्ट्र को उत्तम बनाता है, उसे महत्ता मे लाता है ताकि राष्ट्र की प्रतिष्ठा समाप्त न हो जाए। राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाला जो चालक होता है, संचालक होता है, वह जानता है कि विष्णु की कितनी महत्ता मानी गयी है। जो राजा विष्णु बनकर रुद्र रूप को धारण नहीं कर सकता, उस विष्णु की आभा को नहीं जान सकता, वह राजा नहीं कहलाता।

जब वह उसको क्रियात्मक बनाने का प्रयास करता है तो उसका जीवन एक महत्ता में परिणत हो जाता है। जो राजा विष्णु नहीं बन सकता, अपने राष्ट्र की प्रतिष्ठा को ऊँचा नहीं बना सकता, तो उत्तम ब्राह्मण समाज को चाहिये कि उस राजा को राष्ट्र से दूर कर दे जो ज्ञानी और विवेकी न हो।

चतुर्भुज विष्णु का राष्ट्रिय स्वरुप

पद्म

वशिष्ठ आगे बोले हे राम! सुनो- सर्व प्रथम तुम्हारे भुजाओ मे एक पद्म होना चाहिए। पद्म नाम सदाचार और शिष्टाचार का है। जिस राजा के राष्ट्र मे सदाचार और शिष्टाचार होता है उस राजा का राष्ट्र पवित्र कहलाता है।

जिस राजा के राष्ट्र मे सदाचार नहीं होता, हृदय मे एक-दूसरे का सम्मान नहीं होता, तो जानो कि वह राष्ट्र आज नहीं तो कल अवश्य समाप्त हो जायेगा।  हे राम! यदि तुम अपने राष्ट्र को पवित्र बनाना चाहते हो तो अनिवार्य है कि तुम्हारे एक भुजा मे पद्म होना चाहिए। राजा के राष्ट्र मे  यथार्थ-विद्या होनी चाहिए। जिस विद्या मे सदाचार और शिष्टाचार की तरंगे हो, वही  विद्या सवार्तेम मानी जाती है, वह विद्या राज्य को सफल बना देती है।

हे राम! यह पद्म तुम्हे ऊँचे से ऊँचा बना सकता है। तुम संसार पर शासन कर सकते हो। यदि सदाचार और शिष्टाचार नहीं तो तुम्हारा राष्ट्र राम-राज्य कदापि न बनेगा।

गदा

द्वितीय, तुम्हारे दूसरे हाथ में  ‘गदा’ होनी चाहिए। गदा नाम है क्षत्रियो का। राजा के राष्ट्र मे बलवान क्षत्रिय होने चाहिएं। उन्हे अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए। ब्रह्मचर्य उनके द्वारा पुष्ट होना चाहिए। जिस राजा के राष्ट्र मे अपराधियो को दण्ड दिया जाता है वह राष्ट्र सदैव राम-राज्य बनकर रहता है और जिस राजा के राज्य मे अपराधियो को दण्ड नहीं मिलता, उस राजा का राष्ट्र आज नहीं तो कल अवश्य नष्ट हो जायेगा। हे राम! तुम्हे  ‘गदा’ को स्थिर करना है, अपराधी को दण्ड देना है; दुराचार को नहीं रहने देना है। उस काल मे तुम्हारा राष्ट्र राम-राज्य कहलायेगा। हे राम! तुम्हारे राष्ट्र मे गदा और पद्म मुख्य रूप से रहने चाहिएं। यदि तुम्हारे राष्ट्र की कोई वार्ता किसी दूसरे राष्ट्र मे पहुँच जाती है तो जानो कि राष्ट्र के क्षत्रिय ऊँचे नहीं हैं। जिस राष्ट्र मे गदा होती है उस राजा का राष्ट्र पवित्र होता है।

चक्र

तृतीय ‘चक्र’ होना चाहिए। ‘चक्र’ नाम संस्कृति का है। जिस राजा के राष्ट्र मे संस्कृति होती है, उसके राष्ट्र मे चक्र होता है। संस्कृति वह अमूल्य वाणी है जो मानव को सदाचार और शिष्टाचार देने वाली है। संस्कृति कौन सी वाणी को कहते हैं? संस्कृति राष्ट्र से लेकर कृषि मे,व्यापार मे,धनुर्विद्या मे, और नाना प्रकार के यन्त्रो का आविष्कार करने मे,सदाचार मे, ब्रह्मचर्य की सुरक्षा करने मे और अपनी आत्मा की उन्नति करने मे और परमात्मा तक पहुंचने में  प्रयुक्त होने वाला ज्ञान जिस वाणी मे ओत-प्रोत हो उस वाणी का नाम हमारे यहाँ संस्कृति है। हे राम! इसको आज तुम्हे  विचारना है। यदि तुम्हे अपने राष्ट्र को राम-राज्य बनाना है तो संसार में चक्र फैलाओ।

शंख

इन सबके पश्चात् राम ने प्रश्न किया कि भगवन्! मुझे शंख का निर्णय और करा दीजिए। मैं इस शंख को जानना चाहता हूँ। ऋषि बोले-शंख नाम वेद-ध्वनि का है। जिस राजा के राष्ट्र मे वेद ध्वनि होती है और वह भी जटा-पाठ मे, माला-पाठ मे, घन-पाठ मे, विसर्ग पाठ मे, विदानद-पाठ मे और भी नाना प्रकार के स्वरो में जहाँ भी वेदो का पाठ गाया जाता है उस राष्ट्र में अन्तरिक्ष भी वेद-मन्त्रो के पाठ से आच्छादित रहता है। जिस राजा के राष्ट्र मे सदाचार की शिक्षाएँ, वेद की शिक्षाएँ दी जाती हैं वहाँ का वातावरण भी उत्तम होता है। मनुष्य की विचारधाराएँ ऊँची होती हैं। सदाचार और शिष्टाचार रहता है। हे राम! आज शंख-ध्वनि का प्रश्न किया है। शंख-ध्वनि नाम वेद-ध्वनि का है, ज्ञान का है। हे राम! जिस राजा के राष्ट्र मे यज्ञ होते हैं और यज्ञों मे वेदो का पाठ होता है, उस राष्ट्र मे कार्य करने वाल देवता भी प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होकर उस राजा के राष्ट्र को और प्रजा को और राजा को मनवांछित फल देते हैं। हे राम! तुम्हे अपने राष्ट्र को ऊँचा बनाना है तो तुम्हे विष्णु बनना पड़ेगा ।   

- महर्षि कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से साभार