Vedic Knowledge is the Best. Hindi Article | वेद में छिपी है अनन्त विद्याएं

वैदिक प्रकाश सर्वश्रेष्ठ है और वेद में छिपी है अनन्त विद्याएं


जहा प्रकाश का प्रसंग आता है और प्रकाश की प्रतिभा आती है तो विचार आता है, वेद ही प्रकाश है।


बेटा! जब अध्ययन करते रहते थे, तो गुरुदेव से प्रश्न करते कि “प्रकाश तो यह सूर्य का कहलाता है आप वेद को प्रकाश क्यों कह रहे हैं?’’ तो पूज्यपाद गुरुदेव उसका निराकरण करते कि ‘‘यह जो सूर्य है, यह तो प्रातःकालीन् नेत्रों का प्रकाश बन करके आता है और बाह्य-जगत् को यह दृश्ट्रिपात् कराता है, बाह्य-जगत् वाला जितना भी यह जगत् है, यह उसको मानो प्रकाशित करता है और यह जो वेद रूपी प्रकाश है, यह मानव के अन्तःकरण में जब प्रवेश कर जाता है, तो अन्तःकरण को प्रकाशित कर देता है।’’


बेटा! यह कैसा वेद है, जो मानव के अन्तःकरण को प्रकाशित कर देता है! तो इससे सिद्ध हुआ कि ज्ञान का नाम वेद माना गया है और ज्ञान और प्रकाश मानो दोनों एक सूत्र में सूत्रित होते रहे हैं।
वेद में अनन्त विद्याएं


मेरे प्यारे! परमपिता परमात्मा का जो एक अनूठा ज्ञान और विज्ञान है, अथवा उसको हम अपने में धारण करने वाले बने क्योंकि जितना ज्ञान और विज्ञान है, यह परम्परा से मानवीय मस्तिष्कों में, नृत्य करता रहा है और वह ‘मानं ब्रह्ने कृतम्, यह(मनुष्य) कितना  जान सकता है? अरे  वेद में अनन्त विद्याएं हैं और जितनी विद्या मानव के चरने के योग्य है, उतनी ही चरता है और उन्हीं को क्रिया में लाने का प्रयास करता है। ऐसी अनन्त विद्याएँ हैं, जो वेद में हैं और मानव ने सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक उसके ऊपर विचार भी नहीं किया।


ऐसा अनुपम ज्ञान है। वेद का साहित्य, वेद-मन्त्र, कहीं-कहीं तो मानो ऐसी उड़ानें उड़ता है, कि मानव उसमें शान्त हो जाता है।  क्योंकि जैसे परमपिता परमात्मा अनन्तमयी हैं, उसके ज्ञान और विज्ञान को कोई सीमाबद्ध नहीं कर सकता, इसी प्रकार उसका दिया हुआ जो अनुपम ज्ञान है, वेद है, प्रकाश है, वह भी अनन्तमयी माना गया है, उसकी कोई सीमा नहीं है।  


जैसे यह सूर्य, नेत्रों का बाह्य प्रकाश बन करके आता है, इसी प्रकार मानव के अन्तःकरण को प्रकाश देने वाला, बेटा! यह वैदिक ज्ञान है, वेद का प्रकाश है। इसीलिए वेद को हमें प्रकाश स्वीकार करके गति करनी चाहिए। पोथियों का नाम वेद नहीं कहा जाता। परन्तु पोथियों में जो ज्ञान है, विज्ञान है उसमें जो कृतिका हैं, मेरे प्यारे! देखो उसका नाम ज्ञान है।

  • महर्षि कृष्णदत्त जी महाराज के प्रवचनों से साभार