Oh God lead us on the right path. हे प्रभु ! हमारी बुद्धि सन्मार्ग पर चला


संसार का प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है | प्रत्येक प्राणी अपने में ज्ञान का भंडार भरना चाहता है | अच्छा व्यवहार चाहता है | अपना कल्याण चाहता है | यह सब परम पिता परमात्मा के आशीर्वाद से ही संभव है | पिता के इस आशीर्वाद को ही प्राप्त , करना मानव जीवन में सब का प्रयास रहता है | इस के लिए सन्मार्ग पर चलना आवश्यक है जो सन्मार्ग पर चलता है , उसे प्रभु का आशीर्वाद अवश्य ही मिलता है | वेद के विभिन्न गायत्री मन्त्र में इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए इस प्रकार कहा गया है : -

॥ओउम॥ भूर्भुव:स्व: | तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि |
धियो यो न प्रचोदयात || : ऋग.३.६२.१० , यजु ३६.३,३.३५,३०.२,२२.९ साम . १४६२ तथा तैति आर. १.११.२ तैति .१.५.६.४ , ४.१.११.१ ||


जो सच्चिदानंद स्वरूप , संसार के उत्पादक ,देव, परमात्मा का सर्वोत्कृष्ट तेज है उसे हम धारण करते हैं | वही परमात्मा हमारी बुद्धि को उतम कर्मों में प्रेरित करे |

आस्तिकता तथा बुद्धि शुद्धता दो बातों की आस्तिक होने के लिए आवश्यकता होती है | दोनों की ही सिद्धि गायत्री मन्त्र करता है | गायत्री का अर्थ गय और गाय दिया गया है जिसका भाव है – प्राण |

शतपथ ब्राह्मण में इस प्रकार दिया है : -प्राणा वै गया: ( श.ब्रा.१४.८.१५.७ ) गया:
प्राणा: , गया: एव गाया: तान त्रायते इति गायत्री | इसमें गाय या प्राणों की रक्षा करने वाले को गायत्री बताया है | यही कारण है कि गायत्री मन्त्र के जप से प्राणशक्ति बढती है | यहाँ तक कि यदि प्रतिदिन लम्बे समय तक गायत्री नाद किया जावे तो दिल का दौरा पड़ने का भय कम हो जाता है | इसके साथ ही गायत्री के जप से शारीरिक व बौद्धिक दुर्बलता भी दूर होती है | इतना ही नहीं गायत्री को सावित्री भी कहा है | सावित्री का सविता अर्थात सूर्य या ब्रह्मा से संबध होने से ही यह सावित्री कहलाया है क्योंकि इस मन्त्र के जप से सौर शक्ति उत्पन्न होती है |
इतने से ही सपष्ट होता है कि जो व्यक्ति अपने अन्दर बौधिक विकास की इच्छा,
अभिलाषा रखता है , जो व्यक्ति अपने शरीर को सशक्त रखना चाहता है , जो अपने में सूर्यवत तेजस्विता चाहता है , उसके लिए गायत्री का जप अत्यंत उपयोगी है | बिना गायत्री जप के इस सब में से कुछ भी प्राप्त कर पाना संभव नहीं है |

तैतिरीय ब्राह्मण में तो गायत्री को ब्रह्म वर्चस भी बताया है | इस का भाव है कि गायत्री ही ब्रह्मतेज है | अत: जो व्यक्ति गायत्री का नियमित जप करता है वह ब्रह्मतेज को भी पा लेता है | यह ब्रह्म वर्चस ही है, जिससे व्यक्ति संयमी ,मनोंइग्रही व जितेन्द्रिय बनता है| अत: जिसने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने की इच्छा सिंजो रक्खी है , जो
अपने जीवन में संयम को धारण करना चाहता है अथवा जो मनोनिग्रह की कामना रखता है , उसके लिए गायत्री का जाप आवश्यक व उपयोगी है | तभी तो तान्द्य ब्राह्मण
में " वीर्यं वै गायत्री " कहा गया है |

यदि हम गायत्री मन्त्र की पंक्तियों को देखते हैं तो हमें स्पष्ट दिखाई देता है कि गायत्री के तीन भाग हैं :-

(१) महाव्याह्रति :-
गायत्री में ओउम भूर्भुव: स्व: | , यह प्रथम पंक्ति है | इसे ही मन्त्र का प्रथम भाग कहा गया है | इस भाग में परमात्मा के स्वरूप के सम्बन्ध में बताया गया है | मन्त्र का यह भाग बताता है कि हमारा उत्पादक परमात्मा सत, चित और आनंदस्वरूप है | यह आनन्द ही तो है जिस को प्राप्त करने का प्रयास मानव जीवन भर करता रहता है यह ही उस का ध्येय है , अंतिम लक्ष्य है |

(२) परमात्मा की ज्योति का धारण

तत से लेकर धीमहि तक के गायत्री खंड को मन्त्र के दूसरे भाग स्वरूप लिया जाता है | इस का भाव है कि जो आनंद का वर्णन प्रथम भाग में किया है , उस आनन्द को पाने के लिए परमात्मा के तेज को , परमात्मा की ज्योति को ह्रदय में धारण करना होगा | इस ज्योति को जब तक हम अपने ह्रदय में धारण नहीं करते तब तक ज्ञान की शक्ति ही उद्बुद्ध नहीं होगी , ज्ञान की शक्ति का हमारे अंदर यदि है ही नहीं तो आनंद ,सुख कैसे होगा ? बुद्धि तब ही शुद्ध होती है जब हमें पिता पर पूर्ण विशवास हो ,जिसे आस्तिकता कहा गया है , हम आस्तिक हों, ईश विश्वासी हों और ईश की सर्व व्यापकता पर विश्वास रखते हों | इस प्रकार मन्त्र का यह दूसरा भाग आत्मिकता और आत्मिक शक्ति को उत्पन्न करने का साधन है | जब तक हम यह शक्ति उदित नहीं कर लेते तब तक प्रभु का स्नेह नहीं पा सकते |

(३) मन्त्र का शेषभाग - धियो ...........ध्यात

धियो ...........ध्यात इस के तृतीय भाग स्वरूप है | इस भाग में मन्त्र जप का फल बताया गया है | यह भाग हमें बताता है कि पिता को ह्रदय में धारण करने से उस प्रभु का प्रकाश बुद्धि को शुद्ध करता है | शुद्ध बुद्धि स्वयं ही उतम मार्ग की अनुगामी होने से सन्मार्ग पर चलती है | बुद्धि कुमार्ग को , अकर्तव्य पथ को त्याग कर सन्मार्ग या सुपथ या कर्तव्य पथ पर चलने लगती है | जब बुद्धि सन्मार्ग पर चलती है तो मानव जीवन सुखों से भर जाता है | अत: सुखों के इलाषी प्राणी के लिए आवश्यक है कि वह सन्मार्ग पर चले , जिसे पाने के लिए गायत्री का निरंतर जाप करे |


डा. अशोक आर्य